मेडिटेशन करने के सही तरीके

मेडिटेशन यानी ध्यान का काफी प्राचीन समय से अलग अलग मान्यताओं और धर्मों में काफी महत्त्व रहा है परन्तु पिछले कुछ दशकों में यह प्रैक्टिस पूरी दुनिया में बहुत ज्यादा पॉपुलर हुई है। इस बात के कई प्रमाण मिले हैं की ध्यान करने से हम वह सब अचीव कर सकते हैं जो हम सोच सकते हैं। मेडिटेशन न सिर्फ हमारी क्षमता को बढ़ाता है बल्कि हमारा फोकस और विज़न में क्लैरिटी लाता है। यह भी साबित हुआ है की ध्यान करने से इंसान की सही निर्णय लेने की क्षमता भी बढ़ती है।

हमारा मस्तिष्क कितना काम्प्लेक्स ऑर्गन है यह हम सभी जानते है और आज के समय में हमे मल्टीटास्किंग और परफेक्ट होना बहुत जरूरी हो गया है ऐसे में यदि हम अपने दिमाग को और भी अधिक कुशलता से काम करने के लिए तैयार करना चाहें तो मेडिटेशन हमारे लिए एक वरदान की तरह काम करता है। हमारा दिमाग एक कंप्यूटर की तरह है जिसमे बहुत सारा डाटा स्टोर रहता है। एक सामान्य कंप्यूटर या मशीन की तरह ही दिमाग को भी कुछ देर का ब्रेक देना उसकी एफफिशिएंसी को बढ़ा देता है। ध्यान करना इसी का अभ्यास है। जब आप जागते हुए अपने विचारों से अपने मन को अपने दिमाग को थोड़ा ब्रेक देते हैं।

मेडिटेशन के फायदे –

मेडिकल साइंस भी यह मानता है की मेडिटेशन से ना सिर्फ हमारी फिजिकल हेल्थ इम्प्रूव होती है बल्कि मेन्टल और इमोशनल हेल्थ भी अच्छी होने लगती है। कई मामलों में मेडिटेशन से काफी असाध्य रोगों को भी ठीक करने में भी सफलता मिली है।

मेडिटेशन तनाव और अवसाद को दूर करने में बेहद प्रभावी है , अनिद्रा यानि इन्सोम्निया को दूर करता है। इसके साथ ही यह इच्छाशक्ति यानि विलपॉवर को बढ़ाने, भावनाओं और आवेगों को नियंत्रित करने और नशे की लत के कारणों को समझने में सहायता करता है। इससे पीठ का दर्द, लकवा, मांसपेशियों में खिंचाव, मधुमेह व अस्थमा जैसे रोगों का उपचार भी संभव है। याददाश्त बढ़ाने, मन-मस्तिष्क को एकाग्र करने, आत्मविश्वास बढ़ाने और आज के कॉम्पिटिटिव माहौल में दबावों का सामना करने के लिए मेडिटेशन बहुत प्रभावी होता है।

2015 में की गयी एक रिसर्च के अनुसार रिसर्च में यह साबित हुआ है की इन सभी प्रोब्लेम्स को मेडिटेशन से काफी प्रभावी तरीके से कम किया जा सकता है। मेडिटेशन करने और न करने वाले कुछ लोगों का ब्रेन मैपिंग करने पर यह पाया गया की जो लोग रेगुलर मेडिटेशन यानी ध्यान करते है उनके ब्रेन में अल्फ़ा वेव्स की मात्रा उन् लोगो की तुलना में ज्यादा पायी गयी जो लोग मेडिटेशन नहीं करते। यह अल्फ़ा वेव्स क्रिएटिविटी को बढ़ाने और तनाव को कम करने के लिए जानी जाती हैं।

मेडिटेशन को करने का सबसे अच्छा समय सुबह का माना गया है। ऐसा इसलिए है क्यूंकि सुबह सोकर उठने के बाद हमारा दिमाग थोड़ा शांत होता है और उस समय ध्यान करना आसान होता है। ध्यान यानी मेडिटेशन करने के लिए एक आरामदायक स्थिति में ध्यान मुद्रा में बैठें। अपनी आँखों को बंद करें और अपने सांस लेने पर ध्यान केंद्रित करें। सांस लेना यानी ब्रीथिंग होना हमारे जीवित होने का प्रमाण है। जैसे हम सांस लेते हैं तो यह विचार करें की इस पूरे ब्रम्हांड से पॉज़िटिव एनर्जी आप अपने अंदर ले रहे हैं और सांस छोड़ते हुए यह विचार करें की हमारे अंदर की सारे रोग , गलत विचार , गलत आदतें सभी तरह की नेगेटिविटी को हम अपने आप से दूर कर रहे हैं।

मेडिटेशन कई प्रकार का होता है।

माइंडफुलनेस मेडिटेशन – इसमें हमे ध्यान करते हुए अपने विचारों पर ध्यान देना होता है जो भी विचार हमारे दिमाग में आ रहे होते हैं इस समय हमे उनको जज नहीं करना बस हमे अपने थॉट्स को ऑब्ज़र्व करना होता है। इस प्रैक्टिस से हमे एकाग्र होने और अपने वर्तमान के प्रति जागरूक होने में मदद मिलती है। इसके साथ ही इससे मन और मस्तिष्क रिलैक्स होता है तनाव दूर होता है और बहुत ज्यादा सोचने जैसी समस्याओं से राहत मिलती है।

स्पिरिचुअल मेडिटेशन – यह प्रकार की प्रार्थना की तरह होता है। इसमें आप किसी शांत जगह पर बैठ कर ध्यान करते हैं और अपने ईश्वर का ध्यान करते हैं और अपने आप को यूनिवर्स से कनेक्ट करने की कोशिश करते हैं।

मंत्र मेडिटेशन – ध्यान का यह प्रकार हिन्दू और बौद्ध सहित कई परम्पराओ में काफी प्रचलित होता है। इसमें हमें किसी मंत्र या ध्वनि का बार बार उच्चारण करके उसपर ध्यान केंद्रित करना होता है जैसे ॐ ध्वनि। या फिर कोई मंत्र।

विज़ुअलाइज़ेशन मेडिटेशन – इसमें हमे पॉजिटिव चीज़ों और बातों को सोचना होता है और मन में शांति अनुभव करने पर ध्यान देना होता है। इस मेडिटेशन में हमे इस प्रकार कल्पना करना होता है जो हम करना चाहते हैं या जैसा बनना चाहते है। इस ध्यान में हमे अपने आप को जैसे उस लक्ष्य को प्राप्त कर लिया हो ऐसे कल्पना करना है। विज़ुअलाइज़ेशन मेडिटेशन से फोकस बढ़ता है और मोटिवेशन बढ़ता है।

फोकस मेडिटेशन – फोकस या केंद्रित ध्यान में पांचो इन्द्रियों में से किसी भी एक का प्रयोग करते हुए ध्यान करने की प्रैक्टिस की जाती है। इसमें हम माला में मोतियों को गिनने , साँस लेने छोड़ने में या किसी दीपक या मोमबत्ती की लौ को देखते हुए ध्यान करते हैं। मेडिटेशन की यह तकनीकी भी काफी पुरानी है। शुरुआत में यह मेडिटेशन थोड़ा सा मुश्किल लगता है पर धीरे धीरे प्रैक्टिस के बाद कोई भी इसे आसानी से कर सकता है। इससे मन एकाग्र होने में मदद मिलती है और लर्निंग कैपेसिटी बढ़ती है।

Transcendental Meditation या भावातीत ध्यान – इसमें हमे किसी भी विचार या भावना से ऊपर उठना होता है। दरअसल हमारी भावना हमारे विचार हमारे आस पास की बातों, घटनाओं और हमारी मान्यताओं से बनते हैं। इस मेडिटेशन से हमे अपने विचारों को दूर करने का अभ्यास करना होता है। इस तरह के ध्यान में हमे भावनाओ और किसी भी चीज़ों के बारे में नहीं सोचना होता है। इस ध्यान के अभ्यास से धीरे धीरे हम इमोशनली और फिजिकली फिट होने लगते हैं।

घर में धन समृद्धि लाने वाले 6 असरदार तरीके

आज के समय में पैसा कितना जरूरी है यह हम सभी जानते ही हैं। हम सभी उसके लिए खूब मेहनत भी करते हैं। पर कभी कभी ऐसा लगता है जैसे काफी मेहनत के बाद भी हमारे पास उतना पैसा नहीं आ रहा या आता है और खर्च हो जाता है। पैसा हमारे पास रुकता नहीं है।

इसके अलावा एक और बात यह भी है की यदि घर में आपसी प्यार और सामंजस्य होता है वहाँ पॉजिटिव एनर्जी होती है पर कोई भी सोचेगा की कौन चाहता है घर में क्लेश या तनाव वाला माहौल हो पर कभी कभी कुछ न कुछ कारण से घर के सदस्यों के बीच टकराव होता है। यदि यह हमेशा ही रहता है तो हम कुछ ऐसे उपाय कर सकते हैं जिससे हम अपने घर की पॉजिटिविटी को बढ़ा सकते हैं।

इसके लिए फेंगशुई और वास्तु में कुछ टिप्स हैं जो न सिर्फ हमारे घर में प्रोस्पेरिटी और पॉजिटिविटी लाते हैं बल्कि हमारी इनकम को भी बढ़ाते हैं। इनके पीछे यह लॉजिक होता है की हमारे ऊपर हमारे आस पास की चीज़ों और दिशाओं की एनर्जी का प्रभाव पड़ता है। यदि हमारे घर ऑफिस में पॉज़िटिव एनर्जी बढ़ती है तो यह हमे अच्छी हेल्थ , खुशहाली , सम्मान और धन दिलाती है। इसके विपरीत नेगेटिविटी घर में लड़ाई , अशांति , बीमारी , तनाव और गरीबी को बढाती है। तो उसके लिए हम आज ऐसे ही कुछ आसान और बेहद प्रभावी टिप्स के बारे में बताते हैं जो फेंगशुई और वास्तु पर आधारित हैं और दुनिया भर में इन्हे काफी अपनाया जा रहा है।

1 मिरर – लिविंग एरिया और ऑफिस में ईस्ट या नार्थ डायरेक्शन में मिरर लगाने से धन का आगमन होता है। फेंगशुई के अनुसार मिरर यानी शीशे या दर्पण को डाइनिंग रूम में रखने से सम्पन्नता बढ़ती है। मिरर लगाते समय इस बात का भी ध्यान रखें की उसे कार्नर में ना लगाएं। इसे हमेशा ऐसी दीवार पर लगाए जहा से उसमे सुन्दर दृश्य दिखे। ऐसा इसलिए माना जाता है क्यूंकि मिरर में अच्छी और पॉजिटिव वाइब्स वाली चीज़े दिखने पर वैसी ही एनर्जी बढ़ने लगती है। इसके अलावा यह भी ध्यान दिया जाता है की मिरर को कभी भी किचन या अपने वर्क प्लेस पर न लगाएं ऐसा करने पर आपका वर्क लोड बढ़ सकता है।

2 नेचुरल प्लांट्स – घर और ऑफिस के एंट्रेंस के दोनों तरफ प्लांट्स रखना वास्तु के अनुसार पैसे में वृद्धि करता है। वास्तु और फेंगशुई के अनुसार कई ऐसे प्लांट्स होते हैं जो धन के आगमन को बढ़ाते हैं। इन प्लांट्स को अपने घर और ऑफिस में रखना भी काफी अच्छा होता है। यह प्लांट्स घर की हवा को तो शुद्ध रखते ही हैं साथ ही प्रॉस्पेरिटी यानी समृद्धि को बढ़ाने के लिए भी जाने जाते हैं। मनी प्लांट , जेड प्लांट , लकी बैम्बू ऐसे ही प्लांट्स में से एक हैं। यह सभी इंडोर प्लांट्स है और इनकी देखरेख भी आसान होती है।

3 विंड चाइम्स – वास्तु और फेंगशुई में विंड चाइम्स का बहुत महत्व है। विंड चाइम्स को घर में सकारात्मक ऊर्जा लाने के लिए जाना जाता है। इसके अलावा, कोई भी वास्तु दोष के प्रभाव को कम करने और सामंजस्य लाने के लिए इनका उपयोग कर सकता है। ऐसा माना जाता है की मेटल विंड चाइम को नॉर्थ, वेस्ट या नॉर्थ वेस्ट जोन में लगाना चाहिए। जब हम पश्चिम दिशा में विंडचाइम को लगाते हैं, तो यह फ़ैमिली में सौभाग्य यानी फार्च्यून को बढ़ाता है और फ़ैमिली मेंबर्स को सम्मान दिलाता है। लकड़ी यानी वुडेन विंड चाइम्स पूर्व, दक्षिण पूर्व और दक्षिण दिशा में लगाना अच्छा होता है। ऐसा माना जाता है की वुडेन विंड चाइम्स को पूर्व यानि ईस्ट में लगाने से यह ग्रोथ को बढ़ाता है और दक्षिण पूर्वी यानी साउथ ईस्ट डायरेक्शन में लगाने पर पैसा लाता है जबकि दक्षिण यानी साउथ में रखने पर फेम यानी प्रसिद्धि बढ़ती है।

4 लाफिंग बुद्धा – इनको धन समृद्धि का प्रतीक माना जाता है। इनको अपने ड्राइंग रूम में इस तरह रखना चाहिए जिससे इनका फेस एंट्रेंस की तरफ हो। लाफिंग बुद्धा जो बोरी या गठरी लिए रहते है , यह माना जाता है कि वह बोरी धन और सौभाग्य का प्रतीक है। आमतौर पर लाफिंग बुद्धा की मूर्ति को दरवाजे के सामने रखा जाता है। उनका बड़ा पेट सुख, भाग्य और समृद्धि का प्रतीक है। इसे उपहार के रूप में प्राप्त करना आवश्यक नहीं है। आप इसे खरीद भी सकते हैं।

5. क्रिस्टल लोटस – फेंगशुई में, क्रिस्टल लोटस सकारात्मक ऊर्जा का उत्सर्जन करने और फ़ैमिली बॉन्डिंग को स्ट्रांग करने के लिए जाना जाता है क्योंकि क्रिस्टल पृथ्वी तत्व का है, यह धरती माता के आशीर्वाद का प्रतिनिधित्व करता है। यह पर्यावरण को शुद्ध करता है और परिवार के सदस्यों को एक शांत मानसिकता प्रदान करेगा और उन्हें जीवन में उनके लक्ष्य को प्राप्त करने में सक्षम बनाता है । इसे लिविंग रूम, मुख्य हॉल या बेडरूम के दक्षिण-पश्चिम क्षेत्र में रखना वैवाहिक जीवन को भी सुखी बनाता है और जीवन साथी को वफादार बनाता है।

6. क्रिस्टल ट्री– फेंग शुई जेमस्टोन ट्री को फेंग शुई क्रिस्टल ट्री भी कहा जाता है। फेंगशुई के अनुसार जेम ट्री को साउथ ईस्ट यानी दक्षिण पूर्व कॉर्नर में रखा जाना चाहिए जिससे घर में संपत्ति और समृद्धि बढ़ती है। जबकि नार्थ वेस्ट यानी उत्तर पश्चिम में रखने से घर के मुखिया के करियर में ग्रोथ होने लगती है.

घर को हमेशा सुगन्धित और खुशबूदार रखें। फेंगशुई के अनुसार सुगन्धित वातावरण पॉजिटिविटी को आकर्षित करता है। जिसका संबंध धन और सम्पन्नता से भी होता है। इसके लिए आप ताजे फूलों , अगरबत्तियों , एसेंशियल ऑयल्स का प्रयोग कर सकते हैं।

Good Luck Plants

5 Good Luck Plants

प्लांट्स घर के माहौल को तो खुशनुमा बनाते ही हैं साथ ही हमारे घर की हवा को भी प्यूरीफाय करते हैं। पौधों का घर में होना काफी तरह से हमारे हैल्थ और वेल्थ दोनों को ही बढ़ाता है। काफी सारे रिसर्च और स्टडीज से भी यह पता चलता है की घर या ऑफिस में प्लांट्स होने से घर या उस जगह पर रहने वालों पर बहुत सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। ये प्लांट्स काम के तनाव और थकान को कम करने की क्षमता रखते हैं। फेंगशुई के अनुसार ऐसे कई प्लांट्स होते हैं जो घर में पॉजिटिविटी यानी सकारात्मकता को बढ़ाते हैं और घर के सदस्यों की कामयाबी को बढ़ाते हैं।

कहा जाता है की पैसे पेड़ों पर नहीं उगते हैं। लेकिन कुछ प्लांट्स सच में ऐसे होते हैं जो पैसे और अच्छी किस्मत ला सकते है। फेंगशुई के अनुसार यह प्लांट्स आपके घर और ऑफिस में गुड लक को लाते हैं। ऐसे ही कुछ प्लांट्स के बारे में हम बात करेंगे , जो गुड लक और खुशहाली को आकर्षित करते हैं।

Jade Plant – यह पौधा सफलता और समृद्धि के द्वार के रूप में जाना जाता है। फेंगशुई के अनुसार जेड की तुलना एक मैग्नेट से भी की जा सकती है क्योंकि यह धन को आकर्षित करता है और कई बार अप्रत्याशित सफलता भी दिलाता है।

मनी प्लांट – फेंग शुई के अनुसार कंप्यूटर, टीवी या वाईफाई राउटर के पास एक प्लांट जरूर रखना चाहिए। किसी कोने या शार्प एंगल पर यह प्लांट रखने से चिंता और तनाव कम होता है। यह वाद विवाद और नींद संबंधी परेशानियों से बचने में भी मदद करता है।

लकी बैंबू / बाँस, वास्तव में ड्रेकेना फॅमिली का सदस्य है। लकी बैम्बू दरअसल बाँस नहीं है , क्योंकि यह बाँस जैसा दिखता है इसलिए इसे बैम्बू कहा जाता है। लकी बैंबू प्लांट पॉजिटिव एनर्जी को आकर्षित करता है जो कि अच्छी सेहत, शांति, सुख, समृद्धि, दीर्घायु और सौभाग्य लाने के लिए जाना जाता है। इसीलिए इसे गिफ्ट के रूप में दिया जाता है।

मनी ट्री – ऐसा माना जाता है की लकी ट्री में फेंग शुई के पांच मुख्य तत्वों का प्रतिनिधित्व करने के लिए पत्ते होते हैं; पृथ्वी, धातु, जल, अग्नि और लकड़ी। मनी ट्री को आमतौर पर उन जगहों पर रखा जाता है जहाँ पैसे रखे जाते हैं या जहाँ पैसे की ज़रूरत होती है। और जहाँ भी पौधे को रखा जाता है, धन और समृद्धि उसकी ओर बहती है।

स्नैक प्लांट यानी सेंसेविरिया मूल रूप से अफ्रीका का प्लांट है। इसके कई आकार प्रकार के कारण इसके कई नाम हैं जैसे साप का पौधा , सास की जीभ आदि। नासा के एयर स्टडी में यह पाया गया की यह पौधा बेंजीन, फॉर्मलाडिहाइड, ट्राइक्लोरोइथिलीन, ज़ाइलीन और टोल्यूनि को हटाकर इनडोर एयर क़्वालिटी में सुधार करने में काफी प्रभावी है। फेंगशुई के अनुसार इसे सौभाग्य लाने के लिए जाना जाता है।

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5 आदतें जो चर्बी घटाएं सिर्फ एक महीने में

स्वस्थ और फिट रहने का सबसे बड़ा फायदा है एनर्जेटिक रहना .वजन बढ़ने और मोटापे की वजह से कई बीमारियों के साथ ही हमारा कॉन्फिडेंस भी कम हो जाता है और एनर्जी भी। जिसकी वजह से हमेशा थकान और कोई न कोई दर्द या समस्या बनी रहती है। इसलिए आज हम बात करते हैं उन आदतों की , जो आपको बिना किसी हैवी वर्कआउट के फैट बर्न करने में मदद करती हैं। इन आदतों से आप न सिर्फ और भी फिट होंगे बल्कि इससे आपका वजन भी कम करने में मदद मिलेगी।

पानी की मात्रा बढ़ा दें – पानी वैसे भी हमारे शरीर के लिए बहुत महत्वपूर्ण है।एक सामान्य व्यक्ति को दिन में कम से कम 2 -3 लीटर पानी जरूर पीना चाहिए। यह न सिर्फ बॉडी टेम्परेचर को रेगुलेट करता है बल्कि मेन्टल और फिजिकलहेल्थ को बनाये रखने में भी बहुत बड़ा रोल निभाता है। यदि आपका वजन ज्यादा है और आप मोटापे से परेशान हैं तो आपको ज्यादा पानी पीने की आदत डालनी चाहिए। इससे न सिर्फ शरीर हाइड्रेट रहता है बल्कि आपका BMR भी बढ़ जाता है। BMR कम होना वजन बढ़ने के मुख्य कारणों में से एक है।

पानी पर्याप्त मात्रा में पीने से बार बार खाने का मन नहीं होता। वजन बढ़ने की समस्या के कारण पर गौर करें तो हम देखेंगे की हम थोड़ी थोड़ी देर में कुछ न कुछ खाते रहते हैं,ऐसा जरूरी भी नहीं की जब आप भूखे हों तब ये फीलिंग आये , कई बार खाने के बाद भी हमारा कुछ खाने का मन करने लगता है और इस तरह की भूख में ज्यादातर हम कुछ मीठा खाने को ढूढ़ते हैं। इसका कारण यह है की जब हम पानी कम पीते हैं तो हमारे शरीर को खाने के बाद भी सैटिस्फैक्शन यानि तृप्ति नहीं होती जिससे हम और खाने के लिए प्रेरित होते रहते हैं। इसके लिए खाने के आधा घंटे पहले एक गिलास पानी पीने की आदत बनाएं।

फलों और सब्जियों को खाने में ज्यादा शामिल करें – फैट को कम करने के लिए ज्यादा से ज्यादा हरी सब्जियों और उन फलों का सेवन करना शुरू करें जिनमे पानी ज्यादा होता है। जैसे तरबूज , पपीता ,अनानास ,खरबूज ,संतरा , मोसम्मी , खीरा , गाजर , अमरुद। सब्जियों में लोकि ,तोरई , मेथी , पालक , करेला , ब्रोक्कली ज्यादा लें। यह सभी फैट बर्न करने में मदद करते हैं और पाचन संबंधी समस्याओं को कम करके पेट निकलने की प्रॉब्लम को सॉल्व करते हैं। खाने में जब भी मीठा खाने का मन हो तो चॉकलेट , आइसक्रीम या कुछ स्वीट्स खाने के बजाये कोई फल लें। इसके अलावा फलों की स्मूथीस और जूस बनाकर भी आप ले सकते हैं।

खाने के साथ बड़ी प्लेट में सलाद खाने की आदत डालें – खाने में फाइबर कम होने से कॉन्स्टिपेशन यानी कब्ज की समस्या होने लगती है। इसके लिए सलाद को खाने में शामिल करना बहुत जरूरी होता है। फाइबर एलडीएल यानी खराब कोलेस्ट्रॉल को कम करने में मदद करने के साथ ही ब्लड शुगर को नियंत्रित करने में भी मदद करता है।

घर का बना खाना खाएं – पैक्ड फ़ूड और फ़ास्ट फ़ूड में आयल का ज्यादा प्रयोग और प्रोसेस्ड चीज़ों का ज्यादा प्रयोग करना वजन को अनहेल्दी तरीके से बढ़ाता है। इसके बजाए घर में खाना बनाने से आप उसमे तेल , मसाले और दूसरे इन्ग्रेडिएन्ट्स की मात्रा को अपने अनुसार रख सकते हैं। बाहर के खाने को सीमित करें कोशिश करें की ज्यादा से ज्यादा घर में बना खाना ही खाएं।

कुछ चीज़ों का सेवन रोक दें – अचार, सॉस, ज्यादा शक्कर ,चाय कॉफ़ी ,कोल्ड ड्रिंक्स , आईस्क्रीम और मेदे से बनी चीजों का सेवन कम करें। मीठे के लिए शक्कर की जगह गुड़ या शहद का प्रयोग करें। चाय कॉफ़ी के बजाए सुबह निम्बू शहद पानी या ग्रीन टी लें। स्नैक्स में मेदे से बनी चीज़ों की जगह अंकुरित अनाज या भुने चने या मूंगफली , या मिक्स वेज या फ्रूट सलाद को शामिल करें।

मोटापा कम करने के घरेलु नुस्खों के बारे में पढ़ें

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बॉडी डिटॉक्स और इसके तरीके

आजकल हमारी लाइफस्टाइल और हमारा वातावरण ये दोनों ही ऐसे कारण हैं जिनकी वजह से हम कई तरह के टॉक्सिन्स के सम्पर्क में आ जाते हैं। यह टॉक्सिन्स यानि विषैले तत्त्व हमारे शरीर में कई तरह के रोग उत्पन्न करते हैं। यह साधारण सर्दी जुखाम , स्किन एलर्जी से लेकर कई बड़े रोगों का रूप भी ले सकते हैं। इनकी मौजूदगी ना सिर्फ हमारे कार्यक्षमता यानि एफिशिएंसी को कम करती है बल्कि हमारे इम्यून सिस्टम को भी कमजोर बना देती है। इसीलिए शरीर का डिटॉक्सिफिकेशन बहुत जरूरी होता है। डिटॉक्सिफिकेशन का मतलब है शरीर से सभी तरह के टॉक्सिन्स यानि विषैले तत्वों को बाहर करके शरीर को साफ़ करना।

हमारे शरीर में प्राकृतिक रूप से ही डिटॉक्सिफिकेशन सिस्टम होता है , इसका मतलब यह है की हमारा शरीर खुद ही अपने आप को detox कर सकता है इसके लिए हमे किसी बाहरी equipment या केमिकल की जरूरत नहीं होती। डिटॉक्सिफिकेशन सिस्टम में लिवर , किडनी ,इंटेस्टाइन , स्किन और फेफड़े प्रमुख अंग हैं। लिवर , हमारे शरीर के डिटॉक्सिफिकेशन सिस्टम का सबसे महत्वपूर्ण आंतरिक अंग है। इसके अलावा आंत यानि इंटेस्टाइन का काफी महत्वपूर्ण काम होता है बॉडी को डेटॉक्स करने में।

हम अब उन तरीकों के बारे में बात करेंगे जिनको अपनाकर आप बॉडी को डेटॉक्स करने में मदद कर सकते हैं। इन तरीकों के बारे में आपने सुना भी होगा और कुछ नए तरीके भी है जिनके बारे में आप जानना चाहते होंगे।

हैल्दी लाइफ स्टाइल अपनाकर – इस बारे में आपको पता ही है खाने में प्रोसेस्सेड और डिब्बाबंद चीज़ों का प्रयोग कम करके आप अपने भोजन में कई सारे केमिकल्स को कम कर सकते है। आप जानते ही है पैक्ड फूड्स की शेल्फ लाइफ बढ़ाने के लिए कई तरह के प्रिज़र्वेटिव्स का प्रयोग किया जाता है। इसी तरह जिन चीज़ों को कई तरह की प्रोसेसिंग के बाद खाने में प्रयोग किया जाता है उनमे भी नेचुरल पोषक तत्व खत्म हो जाते है इसके अलावा ऐसे खाने को डाइजेस्ट होने में बहुत ज्यादा समय लगता है और इनमे से कई पूरी तरह डाइजेस्ट भी नहीं होते और हमारे शरीर में टॉक्सिन्स के रूप में इकट्ठा होते रहते हैं। इसलिए खाने में नेचुरल फ़ूड को प्राथमिकता दें इसका अर्थ है खाने में फ्रूट्स वेजटेबल्स की मात्रा ज्यादा रखें।

योग और एक्सरसाइज करें – जैसा आपको पता ही है योग और एक्सरसाइज करने से बॉडी में ब्लड सर्कुलेशन अच्छा होता है इससे हमारे फेफड़ों की कार्यक्षमता बढ़ती है और एक्सरसाइज करने से हम नेचुरल डिटॉक्सिफिकेशन की प्रक्रिया को किकस्टार्ट कर सकते हैं क्योंकि जब हम पसीना बहाते हैं तो वाइट ब्लड सेल्स को पंप करने के लिए बेहतर परिसंचरण को बढ़ावा देने वाला रक्त प्रवाह भी बढ़ता है और अंगों को प्रभावी ढंग से शुद्ध करने में मदद करता है।

इंटरमिटेंट फास्टिंग – यह तरीका आजकल वेट लॉस के लिए काफी लोग अपना रहें हैं। इसमें 24 घंटे में कुछ टाइम फास्टिंग रखना होता है इसका मतलब उस समय आपको उपवास रखना होता है। इसमें कई तरह के विकल्प होते है जैसे आप 16 घंटे फ़ास्ट रखें और 8 घंटे खाने के लिए होंगे उन आठ घंटो में आप जो चाहे खा सकते हो।इसे 16/8 कहते हैं। दूसरा विकल्प है एक दिन खाना और अगले 24 घंटे फास्टिंग और तीसरा तरीका होता है जिसमे सप्ताह में दो दिन आपको केवल 200 -300 कैलोरी ही लेना है इसे ज्यादा कैलोरी वाला खाना आपको नहीं खाना होता है। यह तरीका काफी पुराना है और लगभग सभी धर्मों में उपवास रखने का उल्लेख है चाहे वह हिन्दू धर्म हो , इस्लाम , ईसाई या बौद्ध धर्म। इसके पीछे एक सबसे बड़ा आधार है की जब शरीर फास्टिंग में होता है तो उस समय रिपेयर और डेटॉक्स का काम आसानी से करता है इसीलिए इंटरमिटेंट फास्टिंग वेट मैनेजमेंट के साथ ही कई तरह की मेटाबोलिक और हार्मोनल प्रोब्लेम्स को भी ठीक करने में प्रभावी होता है।

आयल पुल्लिंग , जिसे “कवला” या “गुंडुशा” के रूप में भी जाना जाता है, एक प्राचीन आयुर्वेदिक डिटॉक्स तकनीक है जिसमें लगभग 20 मिनट के लिए खाली पेट मुंह में एक बड़ा चम्मच तेल रखना है यहां आप नारियल का तेल या तिल या जैतून का तेल का प्रयोग कर सकते हैं। इस तेल को मुँह के अंदर भरकर उसे पूरे मुँह में घुमाते रहना है इसमें यह ध्यान रखना है की यह तेल आपको पीना नहीं है। 20 मिनट बाद इसे बाहर थूक देना है और समान्य या हल्के गुनगुने पानी से कुल्ला करलें। आयुर्वेद के अनुसार यह क्रिया मुख्य रूप से आपके शरीर में विषाक्त पदार्थों को बाहर निकालती है, मुख्य रूप से डेंटल हेल्थ में सुधार करने के साथ साथ पूरे स्वास्थ्य को बेहतर बनाने के लिए काफी प्रभावी है।

क्योंकि हमारा बॉडी का डेटोक्सिफिकेशन सिस्टम खुद ही काफी प्रभावी है इसलिए अलग से कुछ करने के बजाये उन चीज़ों को हम अपनाकर अपने आपको डिटॉक्स कर सकते हैं जो बॉडी को डिटॉक्स करने में हेल्प करती है जैसे

  • अंडे, ब्रोकोली और लहसुन जैसे सल्फर युक्त खाद्य पदार्थ खाने से ग्लूटाथियोन के कार्य को बढ़ाने में मदद मिलती है, जो आपके शरीर द्वारा उत्पादित एक प्रमुख एंटीऑक्सिडेंट है।
  • मालिश भी डिटॉक्सिफिकेशन का काम करती है. मालिश करने से शरीर में रक्त संचार तेज़ होता है और विषैले तत्व बाहर निकल जाते हैं. अतः आप भी नियमित मसाज से अपनी बॉडी को डिटॉक्स करते रहे।
  • नींद पूरी लें इससे शरीर और दिमाग की कार्यक्षमता बढ़ती है और बॉडी फिट रहती है और टॉक्सिन्स को बेहतर तरीके से खत्म करने में मदद मिलती है। नींद की कमी होने पर आपके शरीर के पास उन कार्यों को करने का समय नहीं होता है, इसलिए विषाक्त पदार्थों यानि टॉक्सिन्स को पहचानना और उनको पूरी तरह खत्म करना नहीं हो पाता।
  • आंत यानि intestine के हैल्दी होने के लिए उसमे प्रोबिओटिक्स नामक गुड बैक्टीरिया का मौजूद होना बहुत जरूरी है इसके लिए प्रीबायोटिक्स फ़ूड लेना जरूरी होता है। प्रीबायोटिक्स के साथ, हमारे गुड बैक्टीरिया, शॉर्ट-चेन फैटी एसिड नामक पोषक तत्वों को बनाने में सक्षम होते हैं जो स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद होते हैं।
  • प्रीबायोटिक्स से भरपूर आहार खाने से आपका पाचन तंत्र स्वस्थ रहता है, जो उचित डिटॉक्सिफिकेशन और प्रतिरक्षा स्वास्थ्य के लिए महत्वपूर्ण है।
  • पानी शरीर के तापमान को नियंत्रित करता है, जोड़ों को चिकनाई देता है, पाचन और पोषक तत्वों को अवशोषित करता है, और अपशिष्ट उत्पादों को हटाकर आपके शरीर को डिटॉक्स करता है। इसलिए पर्याप्त पानी पीना बेहद जरूरी होता है।
  • सुबह ग्रीन टी , निम्बू पानी , शहद अदरक की चाय भी डिटॉक्स के लिए प्रयोग किये जाते हैं। यह मेटाबोलिज्म को तेज करके टॉक्सिन्स को शरीर से दूर करने में सहायक होते हैं।
  • चुकंदर और गाजर को मिलाकर इसका जूस बनाकर पीना भी हेल्थ के लिए अच्छा होता है। चुकंदर शरीर में ग्लूटेथिओन की मात्रा को बढ़ाने में मदद करता है। यह तत्व शरीर को डिटॉक्सिफाई करने में मदद कर सकता है। हालांकि इसमें काफी मात्रा में मिनरल्स की मौजूदगी के कारण इसका बहुत ज्यादा सेवन नुक्सान कर सकता है।
  • खीरा और पुदीना स्मूथी में थोड़ा सा निम्बू मिलाकर पीना भी बॉडी के डेटोक्सिफिकेशन में हेल्प करता है। इसमें मौजूद एंटीऑक्सीडेंट्स फ्री रेडिकल्स को खत्म करते हैं।
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हाई बीपी को कंट्रोल करने के असरदार उपाय

सामान्य तौर पर हमारा ब्लड प्रेशर 120/80 mmHg होता है। हाई बीपी यानी ब्लड प्रेशर का समान्य से अधिक होना । वैसे तो बीपी बढ़ने का कारण अधिक तनाव या गुस्सा आना है पर इसके और भी कारण हो सकते हैं।

उम्र – उम्र बढ़ने के साथ साथ हाई बीपी का रिस्क भी बढ़ने लगता है नॉर्मली 65 साल की आयु के बाद इसका खतरा बढ़ जाता है खासतौर पर यदि आप मोटापे से भी पीड़ित हों। इसके अलावा खानपान का ठीक न होना भी ऐसी समस्या पैदा कर सकता है।

फिजिकल एक्टिविटी कम होना – हाई बीपी का खतरा उन लोगों को ज्यादा रहता है जो ज्यादा शारीरिक श्रम नहीं करते। एक्सरसाइज या वाक न करना भी इस रोग के होने की संभावना को बढ़ा देता है।

किसी बीमारी की वजह से -डाइबिटीज़ , थायरॉइड प्रोब्लेम्स , या कभी कभी प्रेगनेंसी में भी बीपी बढ़ने लगता है।

सोडियम ज्यादा लेने से – खाने में ज्यादा नमक लेने से , ज्यादा प्रोसेस्ड और पैक्ड फ़ूड , अचार , ज्यादा डीप फ्राइंग फ़ूड आइटम्स ज्यादा खाने से भी बीपी हाई होने की संभावना बढ़ जाती है।

ज्यादा शराब पीने और स्मोकिंग से भी ब्लड प्रेशर बढ़ता है।

यदि अक्सर हाई बीपी रहने को नजरअंदाज किया जाए, तो यह काफी गंभीर समस्या का रूप ले सकता है। हमारे शरीर के सभी अंगो तक रक्त पहुंचाने के लिए उसमे एक आवश्यक दबाव का होना ज़रूरी होता है। पर यदि यह दबाव अधिक होता है तो मस्तिष्क और हार्ट जैसे सेंसिटिव ऑर्गन्स को नुक्सान पहुंचा सकता है। इसी कारण हाई बीपी के कारण स्ट्रोक या ब्रेन हेम्ब्रज, हार्ट फ़ैल होने का खतरा बढ़ जाता है। इसलिए हमें ब्लड प्रेशर को नार्मल रखने के लिए आवश्यक सावधानी रखनी चाहिए।

यदि आप का ब्लड प्रेशर सामान्य से ज्यादा रहता है तो सबसे पहले आपको इसका कारण जानना होगा की कही आपका वजन ज्यादा तो नहीं है या आपके खाने में नमक या पैक्ड फ़ूड की अधिकता तो नहीं है। या फिर आप कोई ऐसी मेडिसिन तो नहीं ले रहे , जिसके साइड इफ़ेक्ट से आपका बीपी बढ़ा हुआ है।

अब हम हाई बीपी को कन्ट्रोल करने के कुछ आसान घरेलु उपाय के बारे में बात करते हैं।

पानी ज्यादा पियें – सुबह उठकर पानी पियें। इसके अलावा पूरे दिन में आठ से दस गिलास पानी जरूर पियें।

लौकी का जूस – सुबह उठकर खाली पेट कच्ची लौकी का रस निकालकर पियें इससे आपका बीपी समान्य होता है।

मेथी के दानो को रात में भिगोकर रखें और सुबह इन दानों को चबाकर खाएं और फिर वही पानी पी लें।

खाने में पालक, लौकी , मेथी की सब्जी लें। फलों में सेब ,केला, अमरूद का सेवन करें।

खीरा और ककड़ी का प्रयोग सलाद में नियमित रूप से ज़रूर करें। यह ब्लड प्रेशर को सही रखने में मदद करता है।

एक कप ताजा पीच/आड़ू के रस में एक चम्मच धनिया और एक चुटकी इलायची मिलाएं। इस घोल को दिन में दो या तीन बार पियें। इससे उच्च रक्त चाप में रहत मिलती है।

मूंग दाल के सूप का सेवन करें, इसमें थोड़ी सी अजवायन, जीरा और एक चुटकी हल्दी मिलाएं। मूंग की दाल उच्च रक्तचाप को कम करने में मदद करती है।

बिना छिलके वाले तरबूज के बीज और पॉपी सीड्स यानी खस खस को मिलाकर पीस ले और इसे ग्लास कंटेनर में स्टोर करके रख लें। रोजाना सुबह नाश्ते से आधा घंटा पहले पानी के साथ लें। इससे रक्त का दबाव कम होता है और बढ़ा हुआ बीपी नियंत्रित हो जाता है।

हिबिस्कस टी यानि गुड़हल के फूल और इलाइची को मिलाकर चाय बनाये या गुड़हल के पावडर को पानी में उबाले और ठंडा होने पर इलाइची डाल कर पीने से हाई बीपी को कम करता है।

संतरे का रस और नारियल पानी को दो – एक के अनुपात में मिलाएं।इसे दिन में एक कप कम से कम दो से तीन बार पियें।

तरबूज में एक चुटकी इलायची और एक चुटकी धनिया मिलाकर खाएं। यह ड्यूरेटिक प्रॉपर्टी के लिए जाना जाता है और ब्लड प्रेशर को रेगुलेट करता है।

मूली रक्तचाप को कम करने में मदद करती है, और आपके रक्त प्रवाह को नियंत्रण में रखती है। आयुर्वेद के अनुसार, मूली का रक्त पर ठंडा प्रभाव माना जाता है।

तुलसी के पत्ते उच्च रक्तचाप के लिए एक प्रभावी उपचार माने जाते है। नीम और तुलसी को मिलाकर लेने से ब्लड प्रेशर को कम करने में काफी मदद मिलती है।

पोटाशियम से भरपूर चीज़े खाएं जैसे पालक,कद्दू, बैंगन , टमाटर ,खीरा, आलू, शकरकंद, गाजर, केला ,हरी मटर।

सुबह सुबह एक कली लहसुन खाने से बीपी कंट्रोल होता है।

इनसब के साथ ही आप कुछ और तरीके अपना कर भी अपने रक्त चाप यानि बीपी को नियंत्रित रख सकते हैं। जैसे प्रतिदिन योग , प्राणायाम करें और कम से कम तीस मिनट तेज गति से पैदल चलें। तनाव न लें और नींद पूरी करें। ज्यादा नमक और तेल वाला खाना न खाएं और सलाद, हरी पत्तेदार सब्जियों का सेवन ज्यादा करें। धूम्रपान , अल्कोहल का सेवन ना करें। ज्यादा चाय कॉफ़ी से भी बचें।

आजकल ब्लड प्रेशर चेक करने की मशीन आसानी से उपलब्ध है। यदि आपको या आपके घर में किसी को बीपी से संबंधित परेशानी रहती है तो इसे आप घर में रख सकते है। जब भी आपको अचानक सरदर्द , कमज़ोरी, घबराहट, उलटी, महसूस होती है तो आप उससे खुद ही अपना बीपी चेक कर सकते हैं और डॉक्टर को कॉल करके तुरंत सहायता प्राप्त कर सकते है।

यदि आपका ब्लड प्रेशर बहुत ज्यादा बढ़ा हो या कोई मेडिकल कंडीशन है या आप पहले से कोई दवाई ले रहें हो तो तो आपको इन सुझावों के पहले डॉक्टर की सलाह लेना बहुत ज़रूरी है।

What is a normal BP in human body

Blood pressure reading me upar ka number(systolic) or neeche ka number (diastolic) hota hai. Normal blood pressure 120 se upar nahi hona chahiye or lower blood pressure reading me 80 se neeche nahi hona chahiye. Iske beech me hai to aapka blood pressure normal hai.
wo log jinka blood pressure normal range se upar ya neeche hai unko doctor se consult kerna chahiye.

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ड्राई स्किन की देखभाल कैसे करें

ड्राई स्किन की देखभाल काफी मुश्किल होती है और कभी कभी ड्राई स्किन के कारण कई अन्य स्किन प्रोब्लेम्स भी होने लगती हैं। यदि आपकी स्किन ड्राई है तो आप जानते होंगे की इसे मैनेज करना कितना मुश्किल काम है।

स्किन ड्राई होना मुख्य रूप से नेचुरल आयल की कमी के कारण होता है जो त्वचा में नमी प्रदान करते हैं। ये तेल त्वचा में स्वाभाविक रूप से पाए जाते हैं, लेकिन जब वे कम मात्रा में होते हैं तो स्किन में सूखापन आने लगता है।

ड्राई स्किन होने के बहुत से कारण होते हैं। लोग अक्सर ठंड के मौसम के साथ शुष्क त्वचा को जोड़कर भ्रमित हो जाते हैं। हालांकि, ठंड का मौसम ही एकमात्र कारण नहीं है , धूप में ज्यादा रहने या खाने में विटामिन्स और मिनल्स की कमी भी स्किन ड्राई होने का कारण हो सकते हैं।

ज्यादा देर तक नहाना और लूफा या स्क्रब का ज्यादा प्रयोग – ज्यादा देर तक नहाना और हार्श साबुन के इस्तेमाल से ड्राई स्किन की समस्या और बढ़ती है इसके लिए साबुन की जगह शावर जेल का प्रयोग करें और स्किन को ज़्यादा स्क्रब करने से बचें।

  • ज्यादा गर्म पानी से नहाना भी त्वचा में सूखापन बढ़ाता है
  • hypothyroid की समस्या की वजह से
  • जेनेटिक कारणों से
  • कॉफ़ी ,सिगरेट, शराब के अधिक सेवन के कारण
  • स्विमिंग पूल में ज्यादा स्विमिंग करने से – स्विमिंग पूल में स्विमिंग करने के बाद आपको नार्मल शावर ज़रूर लेना चाहिए जिससे आपकी बॉडी में क्लोरिनेटेड वाटर न रहे।
  • विटामिन की कमी से -विटामिन A और विटामिन डी की कमी से भी स्किन ड्राई होने लगती है इसके लिए आपको अपने आहार में हरी पत्तेदार सब्जियों और लाल ऑरेंज रंग के फ्रूट्स और वेजटेबल्स को शामिल करना चाहिए।

ड्राई स्किन को सामान्य रखने के लिए हमे उसके कारण के साथ कुछ सावधानियों का भी ध्यान रखना होता है। अब हम कुछ आसान और असरदायक नुस्खों की बात करते हैं जिनसे आप अपनी स्किन को नार्मल और हैल्दी बना सकते हैं।

नहाने के पानी में कुछ बूंदें ओलिव आयल की मिलाएं। इससे आपकी स्किन को मॉइस्चर मिलता है और नहाने के तुरंत बाद हल्की नमीं रहते ही लोशन लगाएं।

वर्जिन कोकोनट आयल – सुबह या रात में सोने से पहले नियमित रूप से लगाएं। इसमें सैचुरेटेड फैटी एसिड्स होते हैं जो त्वचा को पोषण प्रदान करते हैं।

शहद और नारियल के तेल को बराबर मात्रा में मिलाकर चेहरे पर लगाएं और बीस मिनट बाद इसे गुनगुने पानी से धोलें। इसमें एंटीबैक्टीरियल और एंटी फंगल प्रॉपर्टी होती है।

फ्रेश एलोवेरा और मलाई को मिलाकर उसका फेस मास्क चेहरे पर लगाएं , आधे घंटे बाद गुनगुने पानी से फेस वाश करलें।

ओटमील , दूध और शहद का फेस पैक – 2 चम्मच ओटमील 2चम्मच दूध और 2 छोटे चम्मच शहद को 20मिनट बाद गुनगुने पानी से धो लें। इसे आप हफ्ते में 3-4 बार लगा सकते हैं।

केला ,दही, शहद – 2 केले 1 बड़ा चम्मच शहद , एक चौथाई कप दही को मिलाकर 30 मिनट के लिए फेस पर लगाके रखें और फिर धो ले।इससे त्वचा हाइड्रेट होती है और चमकदार बनती है।

ऑरेंज जूस और एलोवेरा जेल -इन दोनों को मिलाकर चेहरे पर लगाएं और 15 मिनट बाद धोलें। ऑरेंज जूस में विटामिन C और एंटीऑक्सीडेंट होते हैं जो स्किन की एजिंग प्रोसेस को धीमा करते है जिसके कारण आप यंग दिखतें है। एलोवेरा का प्रयोग स्किन को हाइड्रेट रखता है।

इन सभी नुस्खों के साथ ही अपनी त्वचा को हैल्दी रखने के लिए पर्याप्त मात्रा में पानी पीना, पर्याप्त नींद लेना पौष्टिक आहार लेना भी ज़रूरी होता है।

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दिमाग को तेज करने के कुछ असरदार वैज्ञानिक तरीके

हम सामान्यतः एक ही तरह का रूटीन हमेशा फॉलो करते हैं जिससे हमारा दिमाग उनसभी कामों की प्रोग्रामिंग एक तरह से सेव करलेता है। अब सोचिये, आप सुबह उठते हैं ,ब्रश करते हैं, नहाते है , ब्रेकफास्ट करते हैं ,ऑफिस जाते हैं। इन सभी में आपको अपने दिमाग में कोई ज़ोर नहीं देना होता है, आपके दिमाग को पता है आपको ब्रश कैसे करना है ,आप को ऑफिस कैसे जाना है। इसके लिए दिमाग को ज़्यादा मेहनत नहीं करनी होती। अब इसपर गौर करें तो हम पाएंगे की हमारे डेली रूटीन में हमारे दिमाग को बहुत ज़्यादा एक्सरसाइज नहीं करनी पड़ती। इनसब के साथ ही हमारी टेक्नोलॉजी पर निर्भरता ने भी दिमाग की कसरत को सीमित कर दिया है। हमारा ज़्यादातर याद रखने का काम हमारा मोबाइल कर लेता है, वो चाहे कोई महत्वपूर्ण मीटिंग हो या कोई पता या फ़ोन नंबर।

इन कारणों से आजकल जो सबसे ज़्यादा होने वाली समस्या है वह है भूलने की। हममे से कई लोग इस परेशानी को अनुभव करते हैं। हमे कई बार चीज़े याद रखने में परेशानी होती है हम छोटी छोटी चीज़े भूल जाते हैं। अब अगर हम अपने दिमाग को तेज़ बनाना चाहें तो क्या करें जिससे हम अपने मस्तिष्क को और ज़्यादा शार्प बना सकें। उसके लिए हम अब कुछ ऐसी ब्रेन एक्सरसाइज की बात करेंगे जिनसे आप अपना ब्रेन पॉवर बढ़ा सकें।

काम का तरीका बदलें – यदि आप राइट हैंडर हैं यानि सभी काम दाएं हाथ से करते हैं तो कुछ छोटे छोटे काम कभी बाएं हाथ से करें जैसे ब्रश करना , बाल ठीक करना, दरवाजा खोलना या न्यूज़ पेपर उठाना। अपने नॉन डोमिनेंट हैंड से काम करना ब्रेन की एक्टिविटी को बढ़ा देता है। यकीन मानिये आपको ये ट्रिक जितनी आसान लग रही है वो जब आप पहली बार ट्राय करेंगे तो आपको काफी मुश्किल लगेगी।

चीज़ों को उल्टा या ऊपर नीचे करके देखे – जैसे अखबार या किसी किताब को कभी उल्टा रखके पढ़ने की कोशिश करें , कभी अपनी वाच को उल्टा पहनकर टाइम देखिये या कैलेंडर को उल्टा लटका दीजिये। इस तरह जब भी आप उसे देखेंगे आपके ब्रेन को थोड़ी मेहनत करनी होगी। ये ट्रिक आपके दिमाग को अच्छी एक्सरसाइज करवाएगी।

कोई किताब को अपने किसी साथी या बच्चे के साथ मिलकर पढ़ें या ऐसा संभव ना हो तो ऑडियो बुक के साथ सुनके पढ़ने की कोशिश करें। इसके लिए कोई बुक बच्चे या आपके दोस्त को पढ़ने दीजिये और बीच में कही वो रुके और आप आगे का भाग पढ़ना शुरू करें। यह प्रैक्टिस आपके इमेजिनेशन पावर को बढ़ाती है। इसमें आपका ब्रेन एक ही शब्द को पढ़ भी रहा है सुन भी रहा है और सोच भी रहा होता है।

नया रास्ता लें – हमेशा एक ही रूट या रास्ते से आना जाना करने से आपके ब्रेन को ज़्यादा मेहनत नहीं लगती। कोई नया या अलग रास्ता लेकर चलना ब्रेन में कोर्टेक्स और हिप्पोकैम्पस को एक्टिवेट करता है। ये दोनों हमारे दिमाग के वह भाग है जो इमोशंस , लर्निंग और मेमोरी को रेगुलेट करते हैं। इस प्रैक्टिस से हमारी सीखने और याद रखने की क्षमता बेहतर होती है।

कुछ नया सीखिए या करिये – नयी भाषा सीखना ,या कोई नया जो आपने कभी नहीं किया। जैसे यदि आपने कभी डांस नहीं किया तो डांस करें या यदि आपको तैरना नहीं आता तो स्विमिंग सीखें, कोई म्यूजिक या म्यूजिकल इंस्ट्रूमेंट बजाना सीखें । कुछ नया करना या सीखना ब्रेन में डोपामाइन के रिलीज़ को ट्रिगर करता है और नए न्यूरॉन्स के बनने को प्रेरित करता है।

मेडिटेशन– सभी ब्रेन एक्सरसाइज में ध्यान यानि मेडिटेशनसबसे ज़्यादा चुनौतीपूर्ण है और सबसे अच्छा है। हमारा दिमाग एक नॉन स्टॉप थिंकिंग मशीन है जिसमे प्रतिदिन लगभग 70000 विचार चलते रहते हैं। इनमे से 90 प्रतिशत विचार रोजमर्रा के काम और घटनाओं से जुड़े होते हैं। ऐसे में दिमाग को कुछ टाइम के लिए शांत रहने की प्रैक्टिस करना वास्तव में काफी मुश्किल काम होता है। इसे हम ब्रेन का पुशअप्स कह सकते हैं। दुनिया भर में एक हजार से भी ज्यादा रिसर्च में ये साबित हुआ है मेडिटेशन से तनाव में कमी होती है ,याददाश्त बढ़ती है , सीखने की क्षमता बढ़ती है , कंसंट्रेशन बेहतर होता है और यहां तक की कई मामलों में मानसिक रोगों में भी फायदा हुआ है।

शारीरिक व्यायाम करें – ब्रेन एक्सरसाइज की जब हम बात करते हैं तो उसमे फिजिकल एक्सरसाइज की बात तो करनी ही होगी। एक्सरसाइज से मस्तिष्क में रक्त का प्रवाह अच्छे से होता है जिससे अधिक ऑक्सीजन और पोषक तत्व यानि न्यूट्रिएंट्स का सर्कुलशन होता है और मेटाबोलिक वेस्ट को अधिक कुशलता से हट जाता है। एक्सरसाइज से फील गुड ब्रेन केमिकल जैसे सेरोटोनिन , डोपामिन , नोरएपिनेफ्रीन बढ़ता है और तनाव कम होता है। इसके साथ ही एक्सरसाइज करने से क्रिएटिविटी,एकाग्रता बढ़ती है , टाइम मैनेजमेंट और निर्णय लेने की क्षमता में सुधार आता है।

दिमाग को तेज़ रखने के लिए ये 11 चीज़े ज़रूर खाएं

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दिमाग को तेज़ रखने के लिए ये 11 चीज़े ज़रूर खाएं

मस्तिष्क हमारे शरीर का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा है। हमारा सारा काम करना , चीज़ों को समझना, सीखना, बोलना सब कुछ मस्तिष्क से ही होता है। इसके सुचारु रूप से काम करने के लिए नींद , योग , मैडिटेशन यानी ध्यान के अतिरिक्त कुछ भोज्य पदार्थ भी है जिनके सेवन से हम दिमाग को तेज कर सकते हैं। चीज़ें याद ना रहना , कही ध्यान केंद्रित ना कर पाना , नयी चीज़ सीखने में परेशानी होना , कुछ भी पढ़ा हुआ भूल जाना ये सब समस्याओं को दूर करने का एक आसान तरीका है अपने आहार में ब्रेन फ़ूड को बढ़ाना। तो आइये अब बात करते है उन खाद्य पदार्थों की जिनसे दिमाग को पोषण मिलता है।

  1. अखरोट , ओमेगा -3 फैटी एसिड, प्राकृतिक फाइटोस्टेरोल और एंटीऑक्सिडेंट का अच्छा स्रोत है। डीएचए, विशेष रूप से एक प्रकार का ओमेगा -3 वसा है जो दिमाग को तेज करने के लिए जाना जाता है। अखरोट में विटामिन ई, फोलेट और मेलाटोनिन सहित कई न्यूरोप्रोटेक्टिव यौगिक भी होते हैं। अखरोट का सेवन तर्कशक्ति को बढ़ाता है। अखरोट जैसे उच्च एंटीऑक्सीडेंट खाद्य पदार्थों का सेवन ऑक्सीडेटिव तनाव के लिए अतिसंवेदनशील को कम करता है जो उम्र बढ़ने में होता है और इसलिए उम्र बढ़ने में संज्ञानात्मक और मोटर फ़ंक्शन को बढ़ाता है।
  2. डार्क चॉकलेट में शक्तिशाली एंटीऑक्सिडेंट गुण होते हैं, इसमें कैफीन सहित कई प्राकृतिक उत्तेजक होते हैं जो फोकस और एकाग्रता को बढ़ाते हैं। यह एंडोर्फिन के उत्पादन को उत्तेजित करने में भी मदद करता है जो मूड को बेहतर बनाने में मदद करता है। डार्क चॉकलेट का उपयोग वस्कुलर इम्पेयरमेंट के इलाज के लिए किया जाता रहा है, जिसमें डिमेन्शिया और स्ट्रोक शामिल हैं।
  3. ब्लूबेरी में, एंटीऑक्सिडेंट और अन्य फाइटोकेमिकल्स होते हैं जो न्यूरोडीजेनेरेटिव ऑक्सीडेटिव तनाव में कमी करने के साथ-साथ सीखने, सोच और याद्दाश्त में सुधार करते हैं। ब्लूबेरी, क्रैनबेरी और स्ट्रॉबेरी जैसे बेरीज़ बढ़ती उम्र में मस्तिष्क को कई तरह से लाभ पहुंचाते हैं।
  4. बादाम लंबे समय से याददाश्त बढ़ाने के लिए जाने जाते है। बादाम, एसीटी (एसिटाइलकोलाइन) के स्तर को बढ़ाता है, जो एक न्यूरोट्रांसमीटर है और याददाश्त को बढ़ाने और अल्जाइमर रोग जैसी स्थितियों से लड़ने में मदद करता है। बादाम में कई पोषक तत्व होते हैं जो मस्तिष्क की शक्ति को बनाए रखने में मदद करते है।
  5. तिल के बीज अमीनो एसिड टायरोसिन का बढ़िया स्रोत हैं, जिसका उपयोग मस्तिष्क को चौकन्ना और याददाश्त को तेज रखने के लिए जिम्मेदार एक न्यूरोट्रांसमीटर डोपामाइन का उत्पादन करने के लिए किया जाता है। तिल के बीज  जिंक, मैग्नीशियम और विटामिन बी -6, सहित अन्य पोषक तत्वों से भी भरपूर होते हैं।
  6. कद्दू के बीजों में शक्तिशाली एंटीऑक्सीडेंट होते हैं जो शरीर और मस्तिष्क को फ्री रेडिकल क्षति से बचाते हैं। वे मैग्नीशियम, लोहा, ज़िंक और तांबा का एक उत्कृष्ट स्रोत भी हैं। मस्तिष्क स्वास्थ्य के लिए इन पोषक तत्वों में से सबसे महत्वपूर्ण है: ज़िंक : यह नर्व सिग्नलिंग के लिए महत्वपूर्ण है।
  7. कॉफी दिमाग को एकाग्र करने में और मनोदशा को ठीक करने में मदद करती है। इसमें मौजूद कैफीन और एंटीऑक्सिडेंट्स अल्जाइमर के खतरे को भी कम करने में सहायक होते हैं।
  8. एवोकैडो एक वसायुक्त फल है जो रक्त के स्वस्थ प्रवाह में योगदान देता है और रक्त के स्वस्थ प्रवाह का मतलब है स्वस्थ मस्तिष्क। एवोकैडो में मोनोअनसैचुरेटेड फैटी एसिड की उच्च मात्रा होती है। 2012 में किए गए एक अध्ययन में पाया गया है कि मोनोअनसैचुरेटेड फैटी एसिड मस्तिष्क में ग्लोरियल कोशिकाओं को एस्ट्रोसाइट्स की रक्षा करने में मदद करते हैं, जो सूचना देने वाली तंत्रिकाओं को सहायता प्रदान करते हैं।
  9. अलसी यानी फ्लैक्स सीड्स भी ब्रेन के लिए टॉनिक की तरह काम करते हैं इनमे पाया जाने वाला ओमेगा 3 फैटी एसिड्स और विटामिन्स दिमाग के कार्य कुशलता को बढ़ाते है और कन्सेंट्रेशन पावर को बढ़ाते हैं।
  10. बीन्स से प्राप्त बी-विटामिन शरीर की कोशिकाओं को ऊर्जा प्रदान करने और एक दूसरे के साथ प्रभावी ढंग से संवाद करने में मदद कर सकते हैं। ये विटामिन शरीर को आनुवंशिक कोड पढ़ने में भी मदद कर सकते हैं ताकि वे आपके सर्वोत्तम कार्य करने में सक्षम हों। बीन्स जैसे काला राजमा , मुंग , मसूर और छोले में बी-विटामिन प्रचुर मात्रा में होते हैं।
  11. ब्रोकोली और फूलगोभी मस्तिष्क के लिए बहुत आवश्यक भोजन है। भोजन में इनके सेवन से अल्जाइमर रोग के बढ़ने या होने के जोखिम को कम करने में मदद मिल सकती है। यह उम्र से संबंधित परेशानियों जैसे याददाश्त कमजोर होने को कम करता है। गर्भावस्था के दौरान इसका सेवन मस्तिष्क में कॉग्निटिव कार्य को बढ़ावा दे सकता है और सीखने और याद रखने की क्षमता में सुधार कर सकता है।

इनके साथ ही साल्मन फिश , अंडे, ओलिव आयल ,शकरकंद ,पालक और नारियल में भी कई ऐसे पोषक तत्व पाए जाते हैं जो दिमाग को तेज करने और एक्टिव रखने में सहायक होते हैं। इन को आप अपने आहार में शामिल करके अपने दिमाग को स्वस्थ और तंदरुस्त बना सकते हैं।

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कैसे करें डायबिटीज को कंट्रोल

आजकल के समय में कुछ समस्यांए इतनी आम हो गईं हैं की उनको हम ये मान कर चलते हैं की उम्र बढ़ने के साथ ये प्रोब्लेम्स तो होती ही हैं। डाइबिटीज़ भी उन्ही समस्याओं में से एक है।

डाइबिटीज़ /मधुमेह (शुगर) की बीमारी से देश के करोड़ों लोग पीड़ित हैं। लगभग हर किसी के घर परिवार में कोई न कोई शुगर पेशेंट तो होता ही है।पहले के समय में डाइबिटीज़ को बड़ी उम्र में होने वाला रोग माना जाता था पर आजकल ये कम उम्र में भी दिखने लगा है । मधुमेह के कारणों पर गौर करें तो पायेंगे की इसके लिए हमारी जीवन शैली सबसे बड़ा कारण है इसके अलावा कई मामलो में यह जेनेटिक भी होता है और कभी किसी मेडिकल स्थिति के कारण।

डाइबिटीज़ मतलब ब्लड में ग्लूकोस का सामान्य मात्रा से ज़्यादा होना। वैसे तो यह एक ही रोग है पर इसकी वजह से कई और गंभीर रोग होने का खतरा होता है जैसे रक्तचाप यानि बीपी का डिस्टर्ब होना, हार्ट रिलेटेड प्रोब्लेम्स ,किडनी रिलेटेड प्रोब्लेम्स ,आँखों की समस्या होना , कोई भी चोट या इन्फेक्शन का देर से ठीक होना, ब्रेन स्ट्रोक , पैरालिसिस , अल्ज़ाइमर का भी खतरा हो सकता है। इसलिए इसे कण्ट्रोल किया जाना बहुत ज़रूरी होता है।

डाइबिटीज़ के लक्षणों की अगर बात करें तो इसके शुरूआती लक्षण हैं-

ज़्यादा प्यास लगना

बार बार भूख लगना

जल्दी जल्दी इन्फेक्शन होना

थकान रहना

बार बार पेशाब आना

स्किन ड्राई होना और खुजली होना

वजन कम होने लगना

दवाइयों के साथ साथ डाइबिटीज़ को नियंत्रित रखने के मुख्य तरीके हैं – योग या एक्सरसाइज और सही आहार ।


योग अभ्यास जैसे कि आसन, प्राणायाम, मुद्राएं, बंध, ध्यान, ब्लड ग्लूकोस के स्तर को कम करने में सहायता करते है। शुगर को कण्ट्रोल करने के लिए नियमित रूप से प्राणायाम , सूर्य नमस्कार करें ।

सूर्य नमस्कार मधुमेह यानी डाइबिटीज़ से पीड़ित लोगों के लिए एक अत्यंत लाभकारी योगाभ्यास है क्योंकि यह ब्लड सर्कुलेशन को ठीक करता है और शरीर में इंसुलिन के सेक्रीशन को ठीक करता है।

कपालभाति और प्राणायाम जैसे आसन का यदि नियमित रूप से अभ्यास किया जाए तो यह डाइबिटीज़ को नियंत्रित करने में काफी प्रभावी हैं। इसके लिए खाली पेट 15 से 30 बार तक इन आसनों का अभ्यास करना चाहिए।

अनुलोम विलोम 10 मिनट , मंडूक आसान 5-5 बार करें।रिसर्च में ये पाया गया है की योग के नियमित अभ्यास से टाइप 2 डाइबिटीज़ को काफी हद तक नियंत्रित किया जा सकता है इससे ब्लड ग्लूकोस के स्तर पर काफी सकारात्मक सुधार होता है।

अर्ध मत्स्येन्द्रासन ,धनुरासन (धनुष मुद्रा), वक्रसाना, मत्स्येन्द्रासन (आधा-रीढ़ की हड्डी को मोड़), हलासन (हल के मुद्रा) करने से पेट संकुचित होता है और पेन्क्रियास में इन्सुलिन बनाने वाली बीटा कोशिकाओं को ठीक करता है जिससे इंसुलिन का स्राव होने लगता है और इस तरह बिना किसी परिश्रम के मधुमेह को नियंत्रित करने में मदद मिलती है।

घरेलु उपचार

एक बड़ा चम्मच मेथी दाना एक गिलास पानी में डालकर रात भर के लिए रख दें , सुबह खाली पेट इस पानी को पियें और मेथी को चबाचबा कर खाएं। इसे लेने के पहले और बाद में 40-45 मिनट तक कुछ ना खाएं।

सावधानी – गर्मी के मौसम में मेथी कम खाना चाहिए। जिन्हे कफ, बदहज़मी ,अस्थमा, थाइरॉइड की शिकायत हो उन्हें मेथी नहीं लेना चाहिए। इसे लम्बे समय तक नहीं लेना है 3 महीने लेने के बाद 1 महीने रुक कर फिर शुरू कर सकते हैं।

मेथी – 200 gm ,अजवाइन– 100 gm , काली जीरी – 50gm । इस तीनो को अलग अलग भून लीजिये। अब इसे अच्छे से पीस कर मिलाकार चूर्ण बना लें। रात के खाने के दो घंटे बाद एक चम्मच इस चूर्ण को गुनगुने पानी के साथ खाएं।

मेथी दाना1 बड़ा चम्मच , हल्दी – आधी छोटी चम्मच , दालचीनी – चुटकी भर
एक गिलास पानी में इनसब को डालकर उबाल लें और जब पानी आधा हो जाए , तो उसे रख लें । यह सुबह खाली पेट लेना है और इसके एक घंटे बाद तक कुछ नहीं लेना है।

करेले में एक इंसुलिन जैसा यौगिक होता है जिसे पॉलीपेप्टाइड-पी या पी-इंसुलिन कहा जाता है जो प्राकृतिक रूप से डाइबिटीज़ को नियंत्रित करने में सहायता करता है।

करेले का जूस पीने से ब्लड शुगर लेवल को बेहतर तरीके से मैनेज किया जा सकता है। करेले को छीलकर उसमे से बीज और सफेद भाग हटा कर छोटे छोटे टुकड़े काट लें और इसे आधा घंटे के लिए ठंडे पानी में भीगा कर रखें और फिर इसमें आधा चम्मच नमक और निम्बू का रस डालकर जूस बना लें। इसे सुबह खाली पेट लें।

जौ के पानी में मौजूद एंटीऑक्सिडेंट ब्लड शुगर को नियंत्रित करने में उपयोगी होते है। इसके लिए जौ को पानी में डालकर 15 मिनट के लिए गर्म करके रख लें और रोज़ इसे खाने के बाद पियें।

जामुन और इसके पत्ते ब्लड ग्लूकोस के स्तर को कम करने में काफी मददगार हैं। रोज़ लगभग 100 ग्राम जामुन का सेवन करने से आपके ब्लड ग्लूकोस लेवल में जबरदस्त सुधार आता है।

दालचीनी में एक बायोएक्टिव कंपाउंड होता है जो डाइबिटीज़ को रोकने में मदद कर सकता है। दालचीनी , इंसुलिन को प्रेरित करता है और ब्लड ग्लूकोस लेवल कम कर देता है। इसके लिए एक गिलास पानी में 2 इंच दालचीनी का टुकड़ा या या पाउडर भिगोएँ। इसे रात भर छोड़ दें और सुबह खाली पेट इसे पी लें।इसका सेवन सावधानी से करना चाहिए इसका अधिक सेवन हानिकारक होता है।

गिलोय की २-२ गोली सुबह शाम लें या गिलोय का काढ़ा बनाकर भी पी सकते हैं।

इसके अलावा डाइबिटीज़ को नियंत्रित रखने के लिए हमें कुछ बातों का ख्याल रखना चाहिए जैसे तली हुई चीज़े , जंक फ़ूड , शहद , मिठाई,गुड़ ,कोल्ड ड्रिंक , मीठे बिस्कुट ,सॉस ,सूजी ,साबूदाना ,मखाने पैक्ड फ़ूड,मीठे फल नहीं खाना चाहिए।

प्रतिदिन पानी 8-10 गिलास पानी पियें और अपनी डाइट में हरी सब्जियों, फली वाली सब्जियों, शिमला मिर्च , टमाटर ,लोकि ,तोरई, गोभी,मटर , प्याज, लहसुन को शामिल करें। फलों में संतरा , मौसमी , अनार,जामुन ,पपीते का सेवन करें।

इस बात का ध्यान रखें की आप भूखे न रहें और एक बार में बहुत ज़्यादा न खाएं। छोटे छोटे मील्स लें और दिन में 4-5 बार खाएं। ब्रेकफास्ट बिलकुल स्किप ना करें।

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मोटापा कम करने के 10 आसान तरीके

आजकल की व्यस्तताभरी ज़िंदगी में हम कई बार अपने आप को अनदेखा कर देते हैं। जिसका प्रभाव हमारे डेली रूटीन ,लाइफ स्टाइल,डाइट इन सभी पर पड़ता है, जो हमारी हेल्थ और पर्सनालिटी पर भी दिखता है। इससे सम्बंधित सबसे आम समस्या है मोटापा यानी ओवरवेट होना। आज कल के लाइफस्टाइल में जबकि फिजिकल वर्क काफी कम होने लगा है हमारा ज़्यादातर काम दिमाग वाला होता है जिसमे ज्यादा चलना भागना शामिल नहीं होता। ज्यादा देर तक ऑफिस में बैठे हुए काम करते रहना हमारे दैनिक जीवन का हिस्सा सा बन गया है इसके बाद देर से खाना और सोना। यह लगभग हर घर की कहानी सा लगता है। ऐसे में मोटापा आना बहुत ही सामान्य है। हर कोई मोटापा कम करना चाहता है, परंतु कभी आलस के कारण तो कभी समय के अभाव के कारण एक्सरसाइज नहीं हो पाती।

मोटापे का मुख्य कारण है , हमारे बेसल मेटाबोलिक रेट (BMR) का कम होना। इसके कम होने से हम जो भी खाते हैं वो देर से डाइजेस्ट होता है और बॉडी में फैट को बढ़ाता है। बेसल मेटाबोलिक रेट को धीमा या कम करने के लिए मुख्य रूप से जो कारण जिम्मेदार होते है वो हैं -हमारी गलत लाइफ स्टाइल , किसी बीमारी या हार्मोनल बदलाव के कारण या जेनेटिक कारणों से।

मोटापे से होने वाले नुकसान की बात करें , तो ये कई गंभीर रोगों का कारण भी बनता है इसलिए अपने वजन को नियंत्रित रखना बेहद ज़रूरी है। इसके कारण घुटनो , कमर दर्द के साथ साथ ब्लड प्रेशर से जुड़ी समस्याएं , डायबिटीज , किडनी रोग ,ह्रदय सम्बंधित रोगों का खतरा बढ़ जाता है। इसलिए अपने वजन को लेकर हमेशा सजग रहना बहुत आवश्यक है।

मोटापे को कम करने के तरीकों में हम एक्सरसाइज के साथ ही उन तरीकों की भी बात करेंगे जिसे अपना कर आप अपना बेसल मेटाबोलिक रेट बढ़ा सकते है, जो वजन कम करने में सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

अब बात करते हैं उन घरेलु नुस्खों की जिनको अपनाने से मोटापा कम होने लगता है ये सभी उपाय शरीर में डाइजेशन को अच्छा करते हैं और एक्स्ट्रा फैट को कम करने में मदद करते है।

  1. हल्दी – गर्म पानी में हल्दी डालकर, सुबह खाली पेट पियें। हल्दी में एंटीबायोटिक , एंटी ऑक्सीडेंट्स होते हैं जो वात,पित्त , कफ तीनो दोषों को दूर करती है इससे मोटापा धीरे धीरे कम होता है।
  2. अजवाइन – एक चमच अजवाइन रात में भीगा कर रख दें , सुबह इसे हल्का गर्म करें और इसमें आधा नीम्बू का रस डालकर पियें। इसे पीने के 40 मिनट तक कुछ ना खाएं ।अजवाइन में एसेंशियल आयल होता है जिसे थाइमोल कहते है ये मेटाबोलिज्म को बढ़ाता है और शरीर के विषैले पदार्थ बाहर निकालने का काम करता है जिससे शरीर का फैट कम होता है।
  3. सोंठ , काली मिर्च और पीपली – इन तीनो को बराबर मात्रा में लेकर चूर्ण बनाएं। इसे एक चम्मच सुबह नाश्ते के बाद और एक चम्मच रात के खाने के बाद गुनगुने पानी से लेने से भी वजन कम होता है।
  4. सौंफ , धनिया – दोनों को बराबर मात्रा में लेकर उसमे थोड़ा अदरक डाल कर पानी में 2-3 मिनट उबाल कर रख लें और दिन में 3-4 बार गुनगुना पियें। इससे फैट कम होगा।
  5. दालचीनी – एक से दो चम्मच दालचीनी पाउडर को एक गिलास गर्म पानी में मिलाकर उसमे आधे नीम्बू का जूस और थोड़ा शहद डाल कर पियें। इस उपाय को रोज़ाना एक बार खाली पेट करें। इससे मोटापा कम होता है।
  6. गुड़ – एक ग्लास पानी में 20 ग्राम हल्का या गहरे रंग वाला गुड़ डाल कर रात भर के लिए रख दें। सुबह एक ग्लास सामान्य गुनगुना पानी पीने के 15 मिनट बाद ये गुड़ वाला पानी गुनगुना करके छान कर पियें। इसमें ध्यान देना है की सफ़ेद गुड़ न लें और गुड़ को कांच के ग्लास में डाल कर रखें।
  7. सौंफ – सौंफ को हल्का भून कर उसे पीसकर पाउडर बनाकर रख लें। और इसे गर्म पानी में मिलकर रोज़ खाने के 15 मिनट पहले पियें। ऐसा आपको दिन में दो बार करना है।
  8. ग्रीन टीइसमें कुछ पोलीफेनॉल्स पाए जाते हैं जो शरीर में जमा फैट को बर्न करने में सहायता करते हैं। दिन में 2-3 बार ग्रीन टी पीना भी मोटापे को कम करता है।
  9. पानी – दिनभर में कम से कम 10 गिलास पानी जरूर पियें। पानी पीने के लिए प्यास लगने का इंतज़ार न करें।
  10. खाने में सलाद जरूर खाएं और ज्यादा मीठा , कोल्ड ड्रिंक ,जंक फूड्स ,पैक्ड फ़ूड, आइसक्रीम, केक और ज्यादा तेल से बनी चीज़ों का सेवन ना करें। मीठा खाने की जगह फ्रूट्स खाने की आदत बनाएं।

इन सब के अलावा आप अपने दिनचर्या में थोड़े बदलाव करके भी मोटापा घटा सकते है जैसे दिन में कम से कम 30 मिनट की वाक , योगा या एक्सरसाइज ज़रूर करें।

सूर्य नमस्कार,स्पॉट जॉगिंग ,अर्ध चंद्रासन ,कुंभकासन, हलासन,सेतुबंधासन, नौकासन , धनुरासन , त्रिकोणासन , पादहस्तासन,अर्द्धहलासन विशेष रूप से मोटापा कम करने में काफी प्रभावी हैं।

यदि किसी भी उपाय से आपके वजन में कमी नहीं होती तो आपको मेडिकल टेस्ट कराने चाहिए जिनसे आपके वजन बढ़ने का कारण का पता चल सकेगा और उसके लिए आपको डॉक्टर की सहायता लेनी होगी।

Q. Motapa kyu badhtaa hai?

Ans. Motapa badhne ke kai karan ho skte hain pr sbse bada karan hai high calories vala khana khaana or workout km karna jisse BMR km ho jata hai.

Q. Motapa km karne ka sbse asan tarekaa kya h?

Diet ya exercise ya dono ko folllow krke BMR ko bdha kar effectively motape ko km kr skte hain. iske sath sugar or oily food ko bhi km krna jruuri h.

Q. Kya home remedies motapa km krne me help karti hai ?

Ha home remedies se digestion ko improve karke or BMR ko badha kar motapa km kia ja skta h. souf , jeera water sahit kai ese ingredients hote hai jo sahi tarah se lie jane pr body ko slim bnate hai.

5 आदतें जो चर्बी घटाएं सिर्फ एक महीने में

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कमर दर्द के कारण और निदान

कमर दर्द काफी आम समस्या है और हममें से कई लोगो को यह समस्या कभी न कभी जरूर होती ही है। वैसे तो Kamar dard सभी को होता है पर पुरुषों की तुलना में महिलाओं को यह परेशानी ज़्यादा होती है।

कमर दर्द 30 और 50 की उम्र के बीच के व्यक्तियों में होने की संभावना अधिक होती है। यह आंशिक रूप से उम्र बढ़ने के साथ शरीर में होने वाले परिवर्तनों के कारण होता है।

कमर दर्द के कई कारण हो सकते है। इन कारणों को हम दो प्रकार में बाँट सकते है जैसे
लाइफ स्टाइल के कारण या किसी चोट या बीमारी के कारण

अब इसमें से पहली कैटेगरी में हम उन कारणों की बात करेंगे जिनका संबंध हमारी लाइफ स्टाइल से है जैसे

  • हमारे उठने बैठने चलने के दौरान बॉडी पोस्चर का सही न होना।
  • ज़्यादा भारी वज़न उठाने से
  • लम्बे समय तक खड़े या बैठे रहना।
  • मोटापा या ज़्यादा वज़न का होना।
  • फिजिकल एक्टिविटी का कम होना जैसे एक्सरसाइज न करना।

दूसरी कैटेगरी में उन कारणों की बात करेंगे जिनकी वजस से हमारे मसल्स या टिश्यूज़ में चोट या खराबी आयी हो जैसे

  • कैल्शियम की कमी से हड्डियों के कमजोर होने से।
  • आर्थराइटिस
  • साइटिका
  • स्पाइन में इन्फेक्शन
  • किडनी इन्फेक्शन
  • डिस्क के टूटने से

इसके अतिरिक्त कुछ स्वास्थ्य स्थितियों के कारण कमर दर्द हो सकता है: जैसे
प्रेगनेंसी में या ओवेरियन सिस्ट के होने से।

अब बात करते है की कैसे आप अपने कमर दर्द से छुटकारा पा सकते है। इसके लिए आपको अपनी दिनचर्या और लाइफ स्टाइल में कुछ बदलाव करने होंगे जिससे आपको बैक पैन से काफी राहत मिलेगी

  • रोज़ाना एक्सरसाइज या मॉर्निंग वाक करें।
  • सोने के लिए सामान्य बिस्तर का प्रयोग करें ज़्यादा नरम बिस्तर का प्रयोग नहीं करना चाहिए।
  • अगर संभव हो तो कुछ समय ज़मीन पर ही सोये यह आपके बैक पैन में काफी आराम देता है।
  • हमेशा अपना बॉडी पोस्चर सही रखें।
  • बैठते समय झुक कर ना बैठें ये आपके बैक पर अनावशयक दबाव डालता है जिसके कारण बैक पैन होता है।
  • आरामदायक फुटवियर का प्रयोग करें।
  • जब कमर दर्द हो तो सीधे लेट जाएँ और अपने घुटने के नीचे कोई तकिए रख लें इससे कमर की मसल्स को आराम मिलेगा।
  • लगातार एक ही जगह न बैठें थोड़ी थोड़ी देर में उठकर थोड़ा टहल लें।
  • बर्फ या गर्म सिंकाई करें।
  • तिल के तेल से मसाज करें।
  • गोंद को घी में सेंक कर उसे गुड़ और सोंठ के साथ मिलाकर खाने से भी कमर दर्द में राहत मिलती है।
  • कैल्शियम की कमी को दूर करने के लिए ऐसे पदार्थो का सेवन करें जिनसे कैल्शियम मिलता है जैसे दूध दही,पनीर,टोफू,सोयाबीन , राजमा, ब्रोक्कली ,अंजीर , बादाम, तिल , चिया सीड।
  • इसके अलावा कुछ योगासन भी कमर दर्द को दूर करने में सहायक होते है जैसे पर्वतासन, बाल आसन , उष्ट्रासन , सेतु बंधासन .

हालाँकि कमर दर्द हमेशा किसी बीमारी के कारण नहीं होता है पर फिर भी लम्बे समय तक कमर दर्द रहना , किसी रोग का संकेत हो सकता है। इसलिए ऐसे में डॉक्टर की सलाह ज़रूरी हो जाती है

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सर्दी खांसी के उपाय

मौसम का बदलना वैसे तो बहुत ही खुशगवार होता है, पर स्वास्थ्य के हिसाब से ऐसे समय काफी सजग रहने की जरूरत होती है क्योंकि कई लोगों को इस समय सर्दी, खांसी , जुकाम जैसी समस्याएँ होने लगती है। सर्दी के लक्षणों में खांसी आना , गले में खराश , हल्का बुखार होना, नाक बंद होना , नाक बहना और छींक आना शामिल होता है।

वैसे तो खांसी की समस्या सर्दि‍यों में ज़्यादा होती है, लेकिन यह कई अन्य बीमारियों के कारण भी हो सकती है-

जैसे साधारण सर्दी जुकाम ,

अस्थमा ,

वायरल इन्फेक्शन ,

टीबी,

किसी तरह की एलर्जी

आपकी खांसी का प्रकार आपको इसके कारण का संकेत दे सकता हैं।

जैसे- आपकी खांसी कैसी महसूस होती है जैसे गीली या सूखी ,

खांसी कब होती है, रात में, खाने के बाद, या व्यायाम करते समय

आपको खांसी कितने समय से चल रही है जैसे १५ दिन से कम है या एक डेढ़ महीने से है या २ महीने से ज्यादा हो गया है।

यदि आपको गीली खांसी है, तो आपको खांसी के साथ मुंह में बलगम आएगा। गीली खाँसी कम से कम 3 सप्ताह या इससे पुरानी हो सकती है और बड़ों में ये 8 सप्ताह से अधिक और बच्चों में 4 सप्ताह तक रह सकती है।

सूखी खांसी अक्सर ज़्यादा मुश्किल होती है और लंबे समय तक बनी रह सकती है। सूखी खांसी में साँस लेने के मार्ग में सूजन या जलन होती है, लेकिन बलगम नहीं आता है।

अब बात करते है कुछ घरेलु उपायों के बारे में जिन्हे अपनाकर हमें खांसी में राहत मिल सकती है।

गीली खांसी होने पर बच्चो को सोने से आधे घंटे पहले १चम्मच शहद देने से उसे खांसी में आराम मिलता है और नींद आ जाती है।

बड़ों को गीली खांसी में २-४ दाने काली मिर्च पीस कर १ चम्मच शहद में मिला कर खाना चाहिए।

सोने से पहले एक गिलास गर्म दूध में एक चम्मच हल्दी घोल कर पीना चाहिए। इसका कारण है हल्दी में कर्क्यूमिन नामक तत्त्व का पाया जाना, जिसमे एंटी-वायरल, एंटी-बैक्टीरियल गुण होते हैं जो संक्रमण को खत्म करने में हमारी मदद करता है , इससे सर्दी खांसी से राहत मिलती है।

सूप , चाय और कॉफ़ी जैसी गर्म तरल पदार्थ गले में खराश और खरोंच को तुरंत राहत प्रदान करते हैं।

नमक पानी का गरारा भी सूखी खांसी में राहत देता है इसके लिए आपको १ गिलास गुनगुने पानी में चुटकी भर नमक डाल कर उससे गरारा करें। इसे आपको दिन में कई बार करना होता है।

सुबह खाली पेट एक गिलास हल्दी वाला गर्म पानी पियें इससे आपका इम्यून सिस्टम मजबूत होता है और इन्फेक्शन जल्दी ख़त्म होता है।

अदरक के रस को हल्का सा गर्म करके उसे शहद के साथ मिला कर खाने से भी सूखी खांसी में आराम मिलता है।

दालचीनी , लोंग ,अदरक , काली मिर्च और तुलसी के पत्तो को चाय में डाल कर काढ़ा पियें।

मुलेठी की चाय पीने से सूखी खांसी में आराम मिलता है। इसके लिए दो बड़ी चम्मच मुलैठी की सूखी जड़ को एक मग में रखें और इस मग में उबलता हुआ पानी डालें। 10-15 मिनट तक रखें। दिन में दो बार इसे लें। आप रेडीमेड मुलेठी चाय भी ले सकते हैं।

पीपल की गांठ को भी सूखी खांसी में लाभकारी माना गया है। इसके लिए एक पीपल की गांठ को पीस लें और उसे एक चम्मच शहद में मिलाकर खा लें या फिर पीपल की छाल का पाउडर लें। इससे कुछ ही दिन में सूखी खांसी ठीक हो जाएगी।

यदि खांसी काफी समय से चल रही है तो उसके लिए आप गिलोय के रस को 2 चम्मच पानी में डाल कर रोजाना सुबह पियें ।इससे धूम्रपान, प्रदूषण या पराग से एलर्जी के कारण होने वाली खांसी में राहत मिलती है।

इसके अलावा खुद को हाइड्रेट रखें , ज़्यादा से ज़्यादा गर्म चीज़ो का सेवन करें ,

आधा चम्मच शहद में, नींबू की कुछ बूंद और एक चुटकी दालचीनी मिलाकर लें।

खाने में उन चीज़ो को शामिल करें जिनसे जिंक मिलता है जैसे साबुत अनाज, टोफू , फलियां, नट्स और बीज,फोर्टिफाइड ब्रेकफास्ट अनाज और डेयरी उत्पाद।

वैसे तो इनसब उपायों को अपनाकर आप सर्दी खांसी से आसानी से छुटकारा पा सकते है लेकिन यदि आपको इन सब उपायों से आराम नहीं मिल रहा है तो आपको डॉक्टर की सलाह ज़रूर लेनी चाहिए।

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गर्भावस्था का 25वां सप्ताह – Pregnancy in 25th week in Hindi

यदि आपने अभी तक गर्भकालीन डायबिटीज की जांच के लिए ग्लूकोज स्क्रीनिंग टेस्ट नहीं कराया है, तो अब आपको यह टेस्ट करा लेना चाहिए। आपके डॉक्टर भी इस टेस्ट को करवाने की सलाह देंगे, जो आम तौर पर 24-28 सप्ताह के बीच ही किया जाता है। आपके रक्त में एनीमिया या आयरन की कमी की जांच भी की जा सकती है। आप जिस प्रकार के वातावरण में रहती हैं, उसके आधार पर आपको काली खांसी का टीका भी लगाया जा सकता है। यदि आपका ब्लड ग्रुप आरएच नेगेटिव है, तो आपको उसका टीका भी लगाया जा सकता है। प्रेगनेंसी क्लासेज जाने का यह उपयुक्त समय है यदि अपने जाना शुरू नहीं किया है तो इस हफ्ते से इसकी शुरुआत भी कर सकती हैं।

25वें हफ्ते की गर्भावस्था में शरीर में होने वाले बदलाव – Body changes in 25th week of pregnancy in Hindi

जैसा जैसे आपके बच्चे के बाल बढ़ते हैं, आप अपने स्वयं के बालों के भी तेजी से बढ़ने का अनुभव करेंगी। लेकिन बच्चे के पैदा होने के बाद इनके झड़ने की संभावना भी बढ़ जाती है। निर्जलीकरण से बचने के लिए तरल पदार्थों का अधिक से अधिक सेवन करें क्योंकि पानी की कमी के कारण चक्कर आना, थकान, सांस की तकलीफ और अन्य दर्द आदि समस्याएं होती हैं। अपनी पीठ के बल न लेटें।

आपकी त्वचा में खिंचाव के कारण वो शुष्क और खुजलीदार हो सकती है, लेकिन लोशन आदि से त्वचा का सूखापन दूर करने में मदद मिल सकती है। आपको आँखों में भी सूखेपन की शिकायत हो सकती है जिससे दृष्टि पर भी असर पड़ता है। हार्मोनों के स्तर में निरंतर वृद्धि और अस्थिरता के कारण आप हॉट फ्लैशेस का अनुभव भी कर सकती हैं। यदि आप कब्ज से पीड़ित हैं, तो अधिक फाइबर युक्त आहार खाने का प्रयास करें और नियमित रूप से व्यायाम करने की आदत डालें।

पचीसवें हफ्ते की गर्भावस्था में शिशु का विकास – Baby development in 25th week of pregnancy in Hindi

शिशु इस हफ्ते में 13½ इंच लंबा और वज़न में सिर्फ 680 ग्राम का होता है। बच्चे का विकास तेजी से हो रहा होता है। 25वें हफ्ते के दौरान, बच्चे की त्वचा में अंदर वसा एकत्रित होने लगती है, जिस कारण उसमें मांस (चर्बी) चढ़ने लगता है। 3-डी अल्ट्रासाउंड में तो आपका बच्चा बिलकुल नवजात शिशु की तरह दिखना शुरू हो जायेगा। इस स्तर पर, अधिकांश महिलाएं बच्चे की बहुत सारी गतिविधियां महसूस करती हैं। लेकिन इसमें चिंता करने वाली कोई बात नहीं है अधिक गतिविधियां भी एक अच्छी बात है। इसका यह अर्थ बिलकुल भी नहीं है कि आपका बच्चा आवश्यकता से अधिक सक्रिय हो रहा है।

पचीसवें हफ्ते के गर्भ का अल्ट्रासाउंड – Ultrasound of 25 weeks pregnancy in Hindi

अल्ट्रासाउंड में बच्चे के कान की करीबी तस्वीर से पता चलता है कि उसके चेहरे की आकृतियां कैसे बनी हैं। यद्यपि उसकी सुनने की क्षमता पूरी तरह से विकसित नहीं हुई है। जब तक बच्चा पैदा होता है, तब तक वह गर्भ में आपकी आवाज को लगातार सुनने की वजह से पहचानने में सक्षम हो जाता है।

25वें सप्ताह के गर्भधारण के लिए टिप्स – Tips for 25th week of pregnancy in Hindi

अगर आपने अभी तक बच्चे का नाम सोचना शुरु नहीं किया है तो अब समय आ गया है कि आप एक लड़की और एक लड़के का अच्छा सा नाम सोच लें। क्योंकि इन दोनों में से कोई भी आपकी ज़िंदगी में आ सकता है। इसके लिए आप परिवार के सदस्यों, दोस्तों या इंटरनेट की मदद ले सकती हैं। अपने पति की भी इस काम में मदद लें। ऐसा करने से आप कुछ क्षण के लिए तीसरी तिमाही की शुरुआत में होने वाले दर्द आदि को भूल जाएंगी। किसी भी प्रकार की तकलीफ होने पर तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें।

प्रेगनेंसी के पचीसवें हफ्ते में डाइट – Diet for 25th week pregnancy in Hindi

शिशु और स्वयं को स्वस्थ रखने के लिए आपको अपने शरीर को विभिन्न पोषण देने की आवश्यकता होती है। कुछ पोषक तत्व केवल खाद्य पदार्थों से ही प्राप्त होते हैं और उन पोषक तत्वों की पूर्ति के लिए आपको अधिक से अधिक उनका सेवन करने के लिए अपने आहार में उनकी मात्रा बढ़ाने की आवश्यकता होती है। कैल्शियम एक ऐसा पोषक तत्व है जो आपके बच्चे के सम्पूर्ण विकास, विशेष रूप से हड्डी और दांतों के विकास में योगदान करता है।

दुग्ध उत्पाद, हरी सब्जियां, पालक और हरी बीन्स आदि कैल्शियम के बहुत अच्छे स्रोत हैं।
दालें, राजमा, बादाम, अखरोट और अंजीर भी कैल्शियम के प्रमुख स्रोत हैं।
विटामिन डी, खाद्य पदार्थों से कैल्शियम के अवशोषण में मदद करता है, इसके लिए आप विटामिन ऑयली मछली (Vitamin oily fish), अंडे और दूध का सेवन कर सकती हैं।
ठंडाई और छाछ आदि पानी के अलावा पेय पदार्थों के सेवन के अच्छे विकल्प हैं। 

गर्भावस्था का 24वां सप्ताह – Pregnancy in 24 weeks in Hindi

गर्भावस्था के 24वें सप्ताह में आने पर दूसरी तिमाही का अंत और तीसरी तिमाही की शुरुआत का समय निकट होता है। बच्चे के जन्म में किसी प्रकार की जटिलता न हो इसलिए नियमित रूप से जांच कराते रहना चाहिए। गर्भकालीन डायबिटीज (Gestational diabetes) की जांच के लिए ग्लूकोज टेस्ट कराएं क्योंकि यह गर्भावस्था के समय ही होती है। लगभग 2-5 प्रतिशत गर्भवती महिलाएं इससे ग्रस्त होती हैं इसलिए यह स्क्रीनिंग (टेस्ट) गर्भावस्था के 24वें और 28वें सप्ताह के बीच किया जाता है।

24वें हफ्ते की गर्भावस्था में शरीर में होने वाले बदलाव – Body changes in 24 week pregnancy in Hindi

24वें सप्ताह में कुछ महिलाएं ब्रेक्सटन हिक्स संकुचन (Braxton Hicks contractions) का अनुभव करना शुरू कर देती हैं। ये कभी कभी गर्भाशय के तन (Tightening) जाने के कारण हैं। आपका पेट संभवत: पहले से थोड़ा अधिक दिखाई देने लगेगा क्योंकि इस समय वो लगभग दो इंच तक और बढ़ जाता है। जैसे जैसे आपके पेट और स्तनों के चारों ओर की त्वचा फैलती है, शुष्क होने के कारण उसमें खुजली भी होने लगती है।

अगर त्वचा के सूखेपन की बात करें तो कुछ महिलाओं को इस स्तर पर आंखें सूखने की शिकायत भी होती है। इस समस्या से छुटकारा पाने के लिए चिकित्सक से परामर्श करके आंखों की ड्रॉप्स (Eye drops) का उपयोग करें। कई गर्भवती महिलाओं को गर्भावस्था के दौरान दृष्टि के धुंधले होने का अनुभव होता है, लेकिन यह कोई बहुत बड़ी समस्या नहीं है। म्यूकस झिल्ली (Mucous membranes) में सूजन के कारण, इस समय महिलाएं सर दर्द और बंद नाक से पीड़ित हो जाती हैं। डॉक्टर से सुझाव लेकर ही इनका उपचार करें।

चौबीसवें हफ्ते की गर्भावस्था में शिशु का विकास – Baby development in 24th week of pregnancy in Hindi

शिशु इस सप्ताह लम्बाई में लगभग एक फुट और आकार में मक्के की बाली के समान, लगभग 680 ग्राम (पिछले हफ्ते से लगभग 113 ग्राम अधिक) का होता है। मस्तिष्क के विकास के साथ साथ उसकी स्वाद ग्रंथियां और फेफड़े भी विकसित हो रहे होते हैं। फेफड़ों में मासपेशियां और कोशिकायें भी विकसित होने लगती हैं जिनसे एक रासायनिक एजेंट उत्पन्न होता है जिसे सर्फेक्टेंट (Surfactant) कहते हैं, जिसकी शिशु को गर्भ के बाहर सांस लेने के लिए आवश्यकता होती है। अगर एक बच्चा समय से पहले इस सप्ताह या आने वाले कुछ हफ्तों में जन्म लेता है तो इसकी कमी की वजह से साँस लेने में समस्या हो सकती है। उसकी आंखें अभी भी बंद होती हैं लेकिन वो अपने हाथों और पैरों से गतिविधियां करता है और स्पर्श पहचानने की योग्यता विकसित करता है। सिर के बाल अभी भी बढ़ रहे होते हैं और बच्चा अपने फेफड़ों से सांस लेने के अभ्यास करना शुरु कर देता है।

चौबीसवें हफ्ते के गर्भ का अल्ट्रासाउंड – Ultrasound of 24 weeks pregnancy in Hindi

अल्ट्रासाउंड में बाईं ओर बच्चे के हृदय के चारों कक्ष दिखाई देते हैं। दायीं ओर हृदय के ऊपरी कक्षों (एट्रिया) से निचले कक्षों (वेन्ट्रिकल्स) में बहने वाले रक्त का चित्र दिखाई देता है। वेन्ट्रिकल्स (Ventricles) की दीवारें एट्रिया (Atria) से अधिक मोटी होती हैं, क्योंकि बच्चे के फेफड़ों और शरीर के बाकी हिस्सों में रक्त इन्हीं के द्वारा पहुंचाया जाता है।

24वें सप्ताह के गर्भधारण के लिए टिप्स – Pregnancy tips for 24th week in Hindi

यदि आपने अभी तक प्रेगनेंसी योगा क्लासेस जाना शुरु नहीं किया है तो अब जाना शुरु कर दें। अगर आपको ऐसी क्लासेज का पता नहीं लग रहा है तो अपने डॉक्टर से इस बारे में बात करें।

प्रेगनेंसी के चौबीसवें हफ्ते में डाइट – Diet for 24th week of pregnancy in Hindi

इस समय सभी पोषक तत्वों की आवश्यकता बढ़ जाती है, जिसके लिए आपको विभिन्न प्रकार के फलों के साथ साथ कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन और डेयरी खाद्य पदार्थ आदि का सेवन करना चाहिए। इसके अलावा, कोलेस्ट्रॉल और विटामिन ए भी इस तिमाही में बहुत आवश्यक होते हैं।

विटामिन ए दृष्टि बढ़ाता है और कोशिकाओं के विकास में मदद करता है। विटामिन ए के लिए अपने दैनिक आहार में अंडे की जर्दी, दूध और दूध से बने खाद्य पदार्थों का सेवन करें।
गाजर, शकरकंद, पपीते और संतरों का सेवन करें जो विटामिन ए के भी बहुत अच्छे स्रोत हैं। 
कोलेस्ट्रॉल स्तर को बनाए रखें इससे समय से पहले डिलीवरी होने की संभावना कम होती है।
स्वस्थ पेय पदार्थों में आप तरबूज का रस, चुकंदर और गाजर का रस पी सकती हैं। लेकिन जहां तक संभव हो घर के बने जूस का ही सेवन करें। 

गर्भावस्था का 23वां सप्ताह – Pregnancy in 23 weeks in Hindi

आपने गर्भावस्था के 23वें सप्ताह में कदम रख लिया है और इस दौरान मां और बच्चे दोनों का वजन बढ़ना चाहिए। इसका मतलब है कि इस हफ्ते में आपका पेट यानी बेबी बंप और ब्रेस्ट दोनों ही कुछ और बड़े हो जाएगें। यह इस बात का संकेत है कि आपका शिशु गर्भ के अंदर बेहतर तरीके से विकसित हो रहा है। अगर आप गर्भावस्था के दौरान अपनी डाइट का ध्यान रख रही हैं, गर्भावस्था के दौरान बताए जाने वाले व्यायाम कर रही हैं और अपनी डॉक्टर की सलाह के मुताबिक प्रेगनेंसी में नियमित रूप से चेकअप के लिए जा रही हैं तो आपकी प्रेगनेंसी में कोई दिक्कत नहीं होनी चाहिए।
वैसे तो प्रेगनेंसी के 23वें हफ्ते तक आते-आते गर्भवती महिलाओं का वजन भी बढ़ जाता है। लेकिन अगर कोई आपसे यह कह रहा हो कि प्रेगनेंसी के हफ्तों के हिसाब से आपका वजन बहुत कम या बहुत अधिक है तो दूसरों की बात सुनने की बजाए सिर्फ इतना याद रखें कि हर महिला का शरीर का गर्भावस्था का अनुभव अलग-अलग होता है। जब तक आपकी डॉक्टर आपसे ये कह रही हैं कि आप और आपका बच्चा पूरी तरह से ठीक है तो आपको वजन बढ़ने को लेकर बहुत ज्यादा चिंतित होने की जरूरत नहीं है।
अगर आप प्रेगनेंसी के इस समय पर पोषक तत्वों से भरपूर चीजों का सेवन करेंगी, सही तरीके से एक्सर्साइज करेंगी, अपनी और अपने होने वाले बच्चे की सेहत का ध्यान रखेंगी तो प्रेगनेंसी के बाद आपके लिए गर्भावस्था के दौरान बढ़े वजन को कम करना आसान होगा। 

बच्चे के विकास की बात करें तो इस समय तक आपका बच्चा किक करने लायक हो जाता है और बच्चे की श्रवण इंद्रियां भी इतनी विकसित हो चुकी होती हैं कि बच्चा, गर्भ में रहते हुए भी आपकी बातों को सुन सकता है। लिहाजा इस समय जितना हो सके अपने बच्चे से बातें करें, उसे गाना सुनाएं, और इन बातों को नोट करें कि कब आपका बच्चा सबसे ज्यादा ऐक्टिव रहता है और आपकी किन बातों पर प्रतिक्रिया देता है। प्रेगनेंसी के 23वें हफ्ते में वैसे तो भ्रूण का अल्ट्रासाउंड नहीं होता लेकिन अगर प्रेगनेंसी में कोई जटिलता हो या आपके गर्भ में एक से ज्यादा बच्चे हों तो अल्ट्रासाउंड हो सकता है। लिहाजा इस हफ्ते में आप रिलैक्स करें, गर्भावस्था की रूटीन को फॉलो करें और अपने बच्चे को बेहतर तरीके से जानने की कोशिश करें।
गर्भावस्था के 23वें सप्ताह में महिला को अपना और बच्चे का स्वास्थ्य जानने के लिए नियमित रूप से प्रसव पूर्व जांचों (Antenatal check ups) के लिए जाना चाहिए। जैसे जैसे दूसरी तिमाही समाप्त होने वाली होती है डॉक्टर के लिए ये जांचें करना आवश्यक हो जाता है।

23वें हफ्ते की गर्भावस्था में शरीर में होने वाले बदलाव – Changes in body during 23rd week of pregnancy in Hindi

बच्चे के बढ़ते वजन की वजह से आपका गर्भाशय लगभग 1½ इंच ऊपर आ जायेगा और जैसे-जैसे आपका गर्भाशय बड़ा होता जाता है आपको अपने फेफड़ों और ब्लैडर पर ज्यादा दबाव महसूस होने लगेगा। फेफड़ों पर दबाव की वजह से सांस फूलने लगती है जबकी ब्लैडर पर दबाव की वजह से प्रेगनेंसी के दौरान बार-बार पेशाब जाने की जरूरत महसूस होती है। इन दोनों ही चीजों की वजह से आपकी परेशानी बढ़ सकती है।
इस समय के आसपास अमीनियोटिक फ्लूइड लीक होने की भी आशंका रहती है जो कि चिंता का विषय है। हालांकि यह पहचानना मुश्किल होता है कि जो लीक हो रहा है वह यूरिन है या अमीनियोटिक फ्लूड। लिहाजा इस बात की जांच करते रहें और अमीनियोटिक फ्लूइड लीक हो तो तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें।

कई बार कमजोर गर्भाशय ग्रीवा की वजह से भी अमीनियोटिक फ्लूइड लीक होने लगता है, लिहाजा प्रेगनेंसी के 23वें हफ्ते के आसपास ग्रीवा के खुलने को चेक करवाना जरूरी होता है। इस दौरान अपनी पेल्विक मासंपेशियों को मजबूत बनाने के लिए पेल्विक फ्लोर एक्सर्साइज करना भी जरूरी होता है। इस हफ्ते आपको अपने पैरों को ऊपर रखना चाहिए ताकि सूजन न हो, पूरा आराम करना चाहिए, अच्छी तरह से स्वस्थ और संतुलित डाइट का सेवन करना चाहिए, एक्सर्साइज करनी चाहिए और पर्याप्त मात्रा में पानी और तरल पदार्थों का सेवन करना चाहिए।

तेईसवें हफ्ते की गर्भावस्था में शिशु का विकास – Baby development in 23rd week of pregnancy in Hindi

गर्भावस्था के 23वें हफ्ते में गर्भ में पल रहे आपके शिशु की लंबाई सिर से लेकर पैर तक 28.9 सेंटिमीटर या 11.4 इंच के आसपास होती है। वैसे तो इस समय शरीर के बाकी हिस्सों की तुलना में शिशु का सिर बहुत बड़ा होता है लेकिन बाकी के अंग भी अब तक विकसित हो जाते हैं। बच्चे के वजन की बात करें तो इस समय तक बच्चे का वजन करीब 500 ग्राम हो जाता है और यहां से प्रेगनेंसी के बाकी के हफ्तों में बच्चे का वजन बढ़ना शुरू होता है। 
बच्चे की त्वचा में अब भी काफी झुर्रियां होती हैं लेकिन यह धीरे-धीरे भरने लग जाती है जैसे-जैसे बच्चे का वजन बढ़ने लगात है। आपके बच्चे की त्वचा पर मौजूद बाल अब गहरे रंग का होने लगता है और यह अल्ट्रासाउंड में नजर भी आने लगता है।
इस हफ्ते आप अपने गर्भ में बच्चे को घूमते हुए और किक मारते हुए महसूस कर सकती हैं। आपका बच्चा दिन के किस समय सबसे ज्यादा ऐक्टिव रहता है, कौन सी बातें उसे उत्तेजित करती हैं और कब वह प्रतिक्रिया देता है, इन सारी चीजों को नोट करके रखें। ऐसा करना इसलिए जरूरी है क्योंकि अगर आपका बच्चा कम किक मारता है या कम सक्रिय हो जाता है तो यह किसी खतरे का संकेत हो सकता है। ऐसे समय में तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें।

तेईसवें हफ्ते के गर्भ का अल्ट्रासाउंड – Ultrasound at 23 weeks of pregnancy in Hindi

सोनोग्राफी में बच्चे के पैर उसकी छाती की ओर होते हैं। आप उसकी लगभग पूरी छवि देख सकती हैं। बच्चे के पूरे शरीर का चित्र निकालना अब मुश्किल हो सकता है क्योंकि अब वह लंबाई में 8 इंच से अधिक लम्बा हो गया है। आने वाले हफ्तों में उसका वजन बढ़ सकता है लेकिन अभी के लिए वह अपेक्षाकृत काफी पतला होता है।

23वें हफ्ते में गर्भावस्था के लक्षण – Pregnancy week 23 symptoms

गर्भावस्था की पहली तिमाही में जो लक्षण आपको महसूस होते थे जैसे- मॉर्निंग सिकनेस आदि वह सब आपको 23वें हफ्ते में महसूस नहीं होगा लेकिन आपको कई दूसरी चीजें अनुभव करनी पड़ सकती हैं। इन लक्षणों से पेश आने का सबसे अच्छा तरीका यही है कि आप प्रसवपूर्व अपना पूरा ध्यान रखें, आराम करें और किसी भी तरह की जटिलता नजर आने पर तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें। गर्भावस्था के 23वें हफ्ते के सामान्य लक्षण ये हैं:
साइटिक तंत्रिका में दर्द: जैसे-जैसे आपके बच्चे का वजन बढ़ने लगता है, उसकी वजह से आपके साइटिक तंत्रिका (नसों में) पर अतिरिक्त भार पड़ने लगता है। यह नस, गर्भाशय के नीचे से शुरू होकर नीचे पैरों तक जाती है। इस वजह से साइटिक तंत्रिका नस के रास्ते में दर्द महसूस हो सकता है। यह दर्द लगातार बना रह सकता है या फिर आता-जाता भी रह सकता है।
वेरिकोज वेन्स: बच्चे के बढ़ते वजन और हार्मोन्स में होने वाले बदलाव की वजह से कुछ महिलाओं को गर्भावस्था के दौरान वेरिकोज वेन्स की भी समस्या हो सकती है। इस स्थिति में पैरों की नसों में, योनिमुख या मलाशय की नसों में सूजन आ जाती है और त्वचा पर आपको ये नसें नीली या बैंगनी रंग की नजर आने लगती हैं। 
राउंड लिगामेंट पेन: प्रेगनेंसी की दूसरी तिमाही में बहुत सी महिलाओं को ग्रोइन यानी पेड़ू और जांघ के जोड़ के हिस्से में या फिर पेट के निचले हिस्से में तेज दर्द महसूस होता है जिसे राउंड लिगामेंट पेन कहते हैं। राउंड लिगामेंट एक स्ट्रेक्चर होता है जिसमें खिंचाव की वजह से यह दर्द होता है और चलने या गतिविधियां करने पर ज्यादा महसूस होता है। वैसे तो यह दर्द पूरी तरह से सामान्य है लेकिन फिर भी अगर आपको ज्यादा तकलीफ महसूस हो रही हो तो डॉक्टर से संपर्क करें।
ब्रैक्सटन हिक्स संकुचन: वैसे तो इस तरह का गर्भाशय संकुचन गर्भावस्था की तीसरी तिमाही में देखने को मिलता है लेकिन कई बार यह दूसरी तिमाही में भी हो सकता है। जब प्रेगनेंसी के दौरान इस तरह का संकुचन महसूस होता है तो गर्भाशय की दीवारें 30 या 60 सेकंड के लिए टाइट हो जाती हैं। कुछ संकुचन 2 मिनट तक का भी हो सकता है। अगर इस तरह का संकुचन बार-बार हो और साथ में तेज दर्द भी हो तो डॉक्टर से संपर्क करें।
नींद से जुड़ी दिक्कतें: गर्भावस्था और लेबर पेन को लेकर तनाव और बेचैनी महसूस होने की वजह से दूसरी तिमाही में नींद से जुड़ी दिक्कतें भी हो सकती हैं। इसके अलावा दर्द, क्रैम्प्स, गर्भ में भ्रूण की गतिविधियां आदि भी गर्भवती महिला की नींद को खराब करने का काम करती हैं।
थकान: इस हफ्ते में थकान भी आपको ज्यादा महसूस होगी। वैसे तो दूसरी तिमाही में महिलाओं को कम थकान महसूस होती है लेकिन अगर आपको ज्यादा थकान लग रही हो तो परेशान न हों, आखिर आप अपने अंदर एक जीवन को बढ़ने में मदद कर रही हैं।
मेलास्मा: इसे मास्क ऑफ प्रेगनेंसी भी कहते हैं। गर्भावस्था की दूसरी तिमाही में बहुत सी महिलाओं को मेलास्मा का अनुभव होता है। इस दौरान माथे पर, गाल में, नाक या होंठों पर अनियमित और गहरे रंग के निशान बन जाते हैं। गर्भावस्था के दौरान होने वाले हार्मोनल बदलाव की वजह से मेलास्मा होता है।
कई दूसरे लक्षण: ऊपर बताए गए सभी लक्षण आमतौर पर दूसरी तिमाही में होते हैं लेकिन पहली तिमाही के कुछ लक्षण भी हो सकता है कि बरकरार रहें या फिर ज्यादा गंभीर हो जाएं। वे लक्षण हैं- मसूड़ों से खून आना, मसूड़ों में सूजन, सीने में जलन, अपच और बदहजमी, पेट फूलना, कब्ज, ब्रेस्ट में सूजन, सिर में दर्द, नाक से खून आना, मूड स्विंग्स आदि।

गर्भावस्था के 23वें सप्ताह में ये चीजें जरूर करें – Tips for 23 weeks pregnancy in Hindi

गर्भावस्था के 23वें हफ्ते में कुछ चीजें ऐसी हैं जिन्हें आपको निश्चित तौर पर करना चाहिए ताकि प्रेगनेंसी का यह हफ्ता और गर्भावस्था के बाकी बचे दिन भी बेहतर तरीके से गुजरें:

अपने डॉक्टर से बात करें और पेल्विक फ्लोर एक्सर्साइज करना शुरू करें ताकि आपकी पेल्विक मांसपेशियां मजबूत बनें। साथ ही अपने गर्भाशय ग्रीवा की ओपनिंग को भी डॉक्टर से चेक करवा लें ताकि आपकी प्रेगनेंसी के बाकी बचे दिन सुरक्षित तरीके से गुजरें। वैसी महिलाएं जिनका सर्विक्स (गर्भाशय ग्रीवा) कमजोर होता है उन्हें डॉक्टर सर्वाइकल सरक्लाज यानी कमजोर ग्रीवा में टांके लगवाने की सलाह देते हैं ताकि सर्विक्स बहुत जल्दी न खुल जाए।
अगर आपको किसी भी तरह के संक्रमण का खतरा हो, अगर आपको खुद में डिप्रेशन या किसी और जटिलता के कोई भी लक्षण नजर आ रहे हों तो डॉक्टर से बात करें और उनसे पूछें कि क्या आप चेकअप के लिए आ सकती हैं। यह जरूरी है कि क्योंकि इलाज में देरी से बीमारी के लक्षण और भी गंभीर हो सकते हैं। लेकिन अगर समय पर इलाज हो जाए तो आपकी और बच्चे दोनों की सेहत बेहतर बनी रहेगी।
जहां तक संभव हो अपने लिए मैटरनिटी कपड़ों की व्यवस्था कर लें और टाइट-फिटिंग वाले कपड़े बिलकुल न पहनें क्योंकि इनकी वजह से पैरों में सूजन बढ़ सकती है जिस कारण दर्द ज्यादा होता है।

प्रेगनेंसी के तेईसवें हफ्ते का डाइट प्लान – Diet plan for 23 weeks pregnancy in Hindi

23वें हफ्ते का डाइट प्लान 21वें और 22वें हफ्ते की तरह ही होता है। अपने भोजन में कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन और डेयरी खाद्य पदार्थों को शामिल करें। इसके अलावा, विटामिन ए और कोलेस्ट्रॉल का सेवन भी ज़रूर करना चाहिए।

शरीर में कोलेस्ट्रॉल स्तर को बनाए रखना बहुत आवश्यक होता है क्योंकि यह प्लेसेंटा को स्वस्थ रखने में मदद करता है। 
तरल पदार्थों में तरबूज का रस, खुबानी शेक, चुकंदर और गाजर का रस पिएं लेकिन घर के बने जूस का ही सेवन करें इससे संक्रमण से बचने में मदद मिलती है। 
बीटा कैरोटीन के लिए गाजर, शकरकंद, पपीते और संतरों का सेवन करें। 
विटामिन ए लाल रक्त कोशिकाओं के उत्पादन में मदद करता है। अपने दैनिक आहार में अंडे की जर्दी, मक्खन और दूध आदि को शामिल करके आप विटामिन ए की पूर्ति कर सकती हैं।
ये चीजें न खाएं- गर्भावस्था के दौरान ऐसी चीजें न खाएं जो मना हो। खासकर कच्चे खाद्य पदार्थ जैसे- कच्ची मछली, कच्चा अंडा या कच्चा सीफूड और सॉफ्ट चीज। इन चीजों के सेवन से सैल्मोनेला और लिस्टेरिओसिस जैसे इंफेक्शन का खतरा अधिक होता है।